संस्कार
हम अपूर्ण महसूस ही इसलिए करते है कि हम पूर्णता की ओर बढे। अपूर्णता से परिपूर्णता की ओर बढ़ना ही जीवन है। जो हम नहीं कर सके है उनको संकल्प में लेकर करना ही पूर्णता है।
ज्यादा सोचना, हताशा या अपने आप को कमजोर (अपूर्ण) महसूस करते रहना हमारा जीवन नहीं... पूर्णता की ओर... संकल्पो की ओर... प्राप्ति की ओर आगे बढ़ना हमारा जीवन है... लक्ष है...
एक अच्छी जीवात्मा अशुभ संस्कारों को त्याग कर शुभ संस्कार से परिपूर्णता की ओर बढ़ती है। जीवन अगर अनित्य चीजों के पीछे रहेगा तो अपूर्णता निश्चित है नित्य से परिपूर्णता प्राप्त होगी और वह नित्य परमात्मा परब्रह्म हैं।
हम अपूर्ण महसूस ही इसलिए करते है कि हम पूर्णता की ओर बढे। अपूर्णता से परिपूर्णता की ओर बढ़ना ही जीवन है। जो हम नहीं कर सके है उनको संकल्प में लेकर करना ही पूर्णता है।
ज्यादा सोचना, हताशा या अपने आप को कमजोर (अपूर्ण) महसूस करते रहना हमारा जीवन नहीं... पूर्णता की ओर... संकल्पो की ओर... प्राप्ति की ओर आगे बढ़ना हमारा जीवन है... लक्ष है...
एक अच्छी जीवात्मा अशुभ संस्कारों को त्याग कर शुभ संस्कार से परिपूर्णता की ओर बढ़ती है। जीवन अगर अनित्य चीजों के पीछे रहेगा तो अपूर्णता निश्चित है नित्य से परिपूर्णता प्राप्त होगी और वह नित्य परमात्मा परब्रह्म हैं।
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