अमूल्य उपदेश
1) तुरन्त दुहा हुआ दूध जैसे शीघ्र नहीं बिगड़ता उसी प्रकार कुकर्मों का परिणाम भी शीघ्र नहीं विदित होता।परन्तु वह राख दबी हुई आग की तरह स्थिर रहता है।
2) मित्र का मिलने पर आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय सहायता करो।
3) तप मनुष्य को कुन्दन बना देता है।
4) उसकी कभी विजय नहीं होती जिसका मन पवित्र नहीं होता।
5) जहाँ अच्छी बात का आदर न हो वहाँ चुप रहना ही बोलने से अच्छा है।
6) जो निरुत्साही, दीन और शोकाकुल बना रहता है उसके सब कार्य नष्ट हो जाते हैं।
7) वास्तविक धर्म यह है कि जिस बात को मनुष्य अपने लिए उचित नहीं समझता, दूसरों के साथ, वैसी बात कभी न करे।
8) ब्रह्मचर्य के पालन से आत्मबल प्राप्त होता है।
9) बिना ब्रह्मचर्य के आयुष्य, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, महात्वाकांक्षा, पुण्य, तप और स्वाभिमान का नाश हो जाता है।
10) मनुष्य बिना ब्रह्मचर्य धारण किये कदापि पूर्ण आयु वाले नहीं हो सकते।
11) सज्जनों की संगति करनी चाहिए,दुर्जनों से किसी प्रकार का सम्पर्क नहीं रखना चाहिए।
12) जिसके पास धैर्य-धन है, उसके पास समस्त संसार का खजाना है।
13) किसी की चालाकी को जान लेना बड़ी बुद्धिमानी है।
14) शुभ कर्म करो,ताकि मरते समय दुःख न हो और अगला जीवन अच्छा मिले।
15) सदाचार का पालन करने से मनुष्य को दीर्घायु, मनचाही सन्तान और अमिट धन मिलता है।सदाचार दुर्गुणों का नाश करता है।
16) जो व्यक्ति अपने मित्र के साथ छल-कपट,झूठ का व्यवहार कर मित्र को धोखा देता है,वह स्वयं को ही धोखा दे रहा है,अपने मित्र को नहीं।
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