Saturday, 29 September 2018

व्यवहारिक जीवन का एक सुंदर समन्वय! A balanced science of living!


सूंड एक हाथी का असाधारण अंग होता है। अतः हमारे लिए बहुत प्रकार से शिक्षाप्रद है। चालीस हजार से भी अधिक पेशियों से बनी यह अदभुत सूंड एक और तो मिट्टी में पड़ा घास का तिनका या सुई, दूसरी और लकड़ी के भारी- भारी लट्ठे तक उठा सकती हैं।
यह क्या दर्शाता है? व्यवहारिक जीवन का एक सुंदर समन्वय! A balanced science of living! हमारे जीवन में कभी हल्के- फुल्के, तो कभी समस्याओं से युक्त भारी क्षण आते हैं। श्री गणपति की सूंड सिखाती है- हर स्थिति को सहजता से शिरोधार्य करो। यही नहीं, इस संसार की छोटी से लेकर बड़ी तक, क्षुद्रतम से विराटतम तक- हर रचना या पहलू से नाता रखो। हेय समझकर किसी का तिरस्कार न करो, न जाने कब किसकी आवश्यकता पड जाए।यह व्यवसाय- सम्बन्धी सफलता का मंत्र है- A mantra of success for work management!
हाथी की सूंड एक और विशेष गुण होता है। वह अपनी इस लचीली सूंड को दाएँ- बाएँ लहरा कर दूर- दूर तक निरीक्षण कर लेता है। कैसे? मात्र सूँघकर!वह हवा में व्याप्त गंध को मात्र सूँघकर  अपने दूर स्थित मित्रो- शत्रुओ, भोजन या जल- स्रोतों का पता लगा लेता है। गंध ही क्यों, हाथी की सूंड में इतनी कमाल की ग्रहण- शक्ति होती है कि वह सूक्ष्मतम तरंगो तक को भांप लेती है। ऐसी तरंगे, जिन्हें पकडना हमारी और आपकी क्षमताओ से बहुत परे है। इस सत्य की खोजकर्ता Katy Payne अपनी पुस्तक -'Silent Thunder' में लिखती है कि हाथी अपने दूरवर्ती मित्र हाथी से बातचीत करने या सम्पर्क साधने के लिए बड़ी विचित्र क्रिया करते है। वे कम वृति (low frequency) वाली इंफ्रा- ध्वनि(infrasound), जिसे 'a sub-sonic rumbling '(एक सूक्ष्म कराहट) भी कहते है, पैदा करते है। यह ध्वनि तरंग रुप में हवा से नहीं, धरती के माध्यम से यात्रा करती है। हाथी अपनी सूंड धरती पर टिका कर इन सूक्ष्म तरंगो को पकडता और डी-कोड करता (समझता) है। इस तरह से वह अपने दूरवर्ती गज- झुंड या साथी से सम्पर्क में रहता है।
गज- सूंड का यह विशेष गुण श्री गणपति देव की मनोशक्तियो की और संकेत करता है। वैदिक मनोविज्ञान के अनुसार हमारे मन में अनेक सुप्त क्षमताएँ है। जैसे कि विचार संप्रेषण, अतीन्द्रिय श्रवण, दूरसंभाषण इत्यादि। आधुनिक मनोविज्ञान ने इन्हें  Telepathy, Clairaudience, Thought-transference  आदि शीर्षक देकर स्वीकारा है। इन मनोशक्तियो के माध्यम से एक व्यक्ति दूर बैठे व्यक्ति या समूह के साथ मनोभावो का आदान- प्रदान कर सकता है। सूक्ष्म विचार या भाव- तरंगो को प्रेषित और ग्रहण करने की सामर्थ्य रखता है। श्री गणपति में ये मन:शक्तियाँ पूरी तरह जागृत है। उनकी सूंड इसी बात का परिचय देती है।
आज का मानव भी आध्यात्मिक साधना- अभ्यास, वैदिक तप- पद्धतियों द्वारा इन्हें जागृत कर सकता है। परन्तु इनसे बढकर यह विशेष गुण हमें एक सामाजिक स्तर की प्रेरणा देता है। वास्तव में आज का मानव संवेदनहीन हो चुका है, इसलिए उसकी बुद्धि जड होती जा रही है और वह इन सूक्ष्म शक्तियों व अनुभूतियो से कोसो दूर हो रहा है। परन्तु आवश्यकता है,  मानव इकाइयों के बीच भी ऐसी ही हार्दिक संवेदना हो कि वे परस्पर एक- दूसरे की भाव- तरंगो को समझ पाएँ। बंधुत्व का ऐसा जोड बंधा हो कि एक ह्रदय दूसरे ह्रदय की सूक्ष्म बोली को सुन पाए। यदि श्री गणपति की सूंड से हम यह गुण ग्रहण कर ले, तो 'विश्व बंधुत्व'(Universal Brotherhood)  का आदर्श साकार होने में देर नहीं।
एक और विशेषता! श्री गजानन की यह सूंड सूंघती भी है तथा जल भी पीती है। अर्थात यह ज्ञानेन्द्रिय भी है और कर्मेन्द्रिय भी है। अतः प्रतीक रुप में, यह ज्ञान और कर्म का समन्वय है। हमें विवेकजनित शिक्षा देती है कि हम ज्ञान से अभिभूत होकर कर्म करे-
'योगस्थ: कुरु कर्माणि '।
जीवन में ज्ञान और कर्म, दोनो का समन्वय करो। अपने व्यक्तित्व को दोनो के आधार पर संचालित करो।

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