Monday, 10 September 2018

कल-युग " में रहें कोई बात नहीं मगर " कल-युग " आप में ना रहे

आज का भगवद चिंतन ॥
               
       किसी भी कार्य को समय पर न कर उसे " कल " पर छोड़ देना यह आज के आदमी का स्वभाव बन गया है। शायद इसीलिए इस युग का नाम " कल युग " यानि कलियुग रखा गया है। कलयुग यानि वो युग जिसमें प्रत्येक आदमी अपने काम को कल पर टाल दे। कलयुग यानि वो युग जिसमें आदमी अपने वर्तमान को बेचकर, वर्तमान का दुरूपयोग कर भविष्य में सुख से जीने की कल्पना करता है।
       कार्य कोई भी क्यों ना हो, चाहे वो व्यवसाय का हो, आत्मसुधार का हो, पुण्यार्जन करने का हो चाहे अन्य सामजिक कार्य हो, आज मेरे पास समय नहीं है, मै कल इस काम को जरूर करूँगा। यह बार-बार उच्चारण करना अब हमारी आदत बन गई है।
       अगर आप भी अपने कार्यों को " कल " के भरोसे छोड़ देने के आदी हैं तो फिर समझ लेना आप जीवन में बहुत कुछ खोने जा रहे हो। सत्कर्मों, शुभकर्मों और अपने कार्यों को आज और अभी से अपने जीवन में स्थान दें। आप " कल-युग " में रहें कोई बात नहीं मगर " कल-युग " आप में ना रहे।


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