Saturday, 29 September 2018

मृत्यु कैसे होती है ?

मृत्यु कैसे होती है ?

मृत्यु का जब आक्रमण आरम्भ होता है तब पैरों की तरफ से प्राण ऊपर को खीचने लगते हैं, उस समय बड़ा कष्ट होता है। हृदय (दिल) की धड़कन बढ़ जाती है, चक्कर आने लगते हैं, साँस रुक--रुक कर चलती है। दम घुटने लगता है और प्राणी चिल्लाता  पुकारता है। यह क्रम कुछ देर तक चलता रहता है। और प्राण खींचकर झटका दे--देकर कमर तक का भाग त्याग देते हैं। वह भाग शून्य हो जाता है, निर्जीव मुर्दा जैसा हो जाता है जैसे लकवा मार गया हो उसमें कोई क्रिया (हरकत) नहीं होती तब लोग कहने लगते हैं कि इधर की नब्ज छूट गयी। इसी प्रकार प्राण खींचकर कण्ठ में रुक जाता है और कण्ठ से नीचे का भाग निर्जीव हो जाता है, न वो हिल सकता है, और न कुछ हरकत कर सकता है, साथ ही वाणी भी निर्जीव होकर बंद हो जाती है। और दम बुरी तरह घुटता है ! आँखों से आँसू निकलने लगते हैं पर वो बता नहीं सकता कि उसे कितना कष्ट है। पास के लोग सगे--सम्बन्धी पुत्र--पुत्री सब खड़े--खड़े देखते हैं और खुद भी रोते हैं पर समझ नहीं पाते कि क्या कष्ट है, यह दशा बहुत देर तक रहती है।

फिर भयानक शक्ल यमदूत की उसे दिखाई देती है। उनकी भयानक आकृति देखकर आँखे फिरने लगती हैं। वो बोलते हैं कि मकान खाली करो उनकी भयानक आवाज सुनकर सिर फटने लगता है मानो हजारों गोला बारुदों की आवाज आ रही हो  यह दशा बड़ी भयानक होती है और वही जान सकता है जिसपर बीतती है। तब यमदूत एक फन्दा फेंकते हैं और आत्मा को पकड़कर जोर का झटका देते हैं। उस समय आँखे उलट-- पुलट हो जाती हैं और उस कष्ट का वर्णन नहीं हो सकता। जैसा कि रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में श्रीमद्गोस्वामीतुलसीदासजी ने लिखा है---

जनमत मरत दुसह दुख होई।

अर्थात् जन्म और मृत्यु के समय अपार कष्ट होता है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग कहते हैं मरते समय 100 बिच्छू एक साथ काट रहे हों उतना कष्ट मरनेवाले को होता है।

यमदूत उसके लिंग शरीर को शरीर से निकालकर प्राणों के साथ घसीटते हुए ले जाते हैं और धर्मराज की कचहरी में पेश कर देते हैं जहाँ कर्मानुसार दण्ड (सजा) सुनाया जाता है। यह है मृत्यु का दृश्य।

महात्मा इन दृश्यों को देखते रहते हैं और भूले जीवों को चेताते रहते हैं कि सुधर जाओ होश में आ जाओ वरन् एक दिन सबकी यही दशा होने वाली है। जीव के सच्चे रक्षक संत सत्गुरु होते हैं जो जीव को काल के दण्ड से बचा लेते हैं। शाकाहारी रह कर भगवान् का सत्गुरु का ध्यान करके इस कलियुग में बचा जा सकता है।

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