विचार मंथन
ईश्वर जिस पर खुश होता है उसे नदी की सी दानशीलता , सूर्य सी उदारता ओर पृथ्वी की सी सहनशक्ति प्रदान करता है।
मैं आत्मा का रूप हूं, मुझ में जन्म कहां और मरण कहाँ। इस का चिंतन भी हमारा कर्तव्य नही, इसी निश्चय का नाम मोक्ष है।
जैसे मृत शरीर को इच्छा या द्वेष नही होता, सुख दुख नही होता वैसे ही जीवित रहते हुए भी मृत समान जड़ भरत की भांति देहातीत रह सकता हैं वह वास्तव में संसार विजयी हुआ है और वास्तविक आनंद को जनता है ।
ईश्वर जिस पर खुश होता है उसे नदी की सी दानशीलता , सूर्य सी उदारता ओर पृथ्वी की सी सहनशक्ति प्रदान करता है।
मैं आत्मा का रूप हूं, मुझ में जन्म कहां और मरण कहाँ। इस का चिंतन भी हमारा कर्तव्य नही, इसी निश्चय का नाम मोक्ष है।
जैसे मृत शरीर को इच्छा या द्वेष नही होता, सुख दुख नही होता वैसे ही जीवित रहते हुए भी मृत समान जड़ भरत की भांति देहातीत रह सकता हैं वह वास्तव में संसार विजयी हुआ है और वास्तविक आनंद को जनता है ।
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