👉 *जिन्दगी जीने की समस्या (भाग 2)*
🔷 *प्राचीन काल में हमारे पूर्वज मनीषियों ने जीवन लक्ष्य की पूर्ति के महान विज्ञान का आविष्कार करते हुए इस बात पर बहुत जोर दिया था* कि व्यक्ति का लौकिक जीवन पूर्ण रीति से सुव्यवस्थित और सुसंस्कृत हो। *आत्म कल्याण का मार्ग यही आरम्भ होता है।* यदि मनुष्य अपने सामान्य जीवन क्रम को सन्तोषजनक रीति से चला न सका तो *आध्यात्मिक जीवन में भी, परलोक में भी उसको सफलता अनिश्चित ही रहेगी।*
🔶 इस तथ्य को दृष्टि में रखते हुए *चार आश्रम की क्रमबद्ध व्यवस्था की गई थी।* आरंभिक जीवन में *शक्ति संचय,* मध्य जीवन में *कुटुम्ब और समाज की* प्रयोगशाला में अपने गुण कर्म स्वभाव का परिष्कार, ढलते जीवन में *लोकहित के लिए परमार्थ* की तैयारी और अन्त में जब सर्वतोमुखी *प्रतिभा एवं महानता विकसित हो जाय* तो उसका लाभ समस्त संसार को देने के लिए *विश्व आत्म परम आत्मा, समष्टि जगत् को आत्म समर्पण करना।* यही ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की प्रक्रिया है।
🔷 *लौकिक जीवन में अपनी प्रतिभा का परिचय दिये बिना ही लोग पारलौकिक जीवन की कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहते है।* यह तो स्कूल का बहिष्कार करके सीधे एम. ए. की उत्तीर्ण का आग्रह करने जैसी बात हुई। *इस प्रकार व्यतिक्रम से ही आज लाखों साधु संन्यासी समाज के लिए भार बने हुए है।* वे लक्ष्य की प्राप्ति क्या करेंगे, शान्ति और संतोष तक से वंचित रहते है। *इधर की असफलता उन्हें उधर भी असफल ही रखती है।*
.... *क्रमशः जारी*
✍🏻 *पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
📖 *अखण्ड ज्योति,*
🔷 *प्राचीन काल में हमारे पूर्वज मनीषियों ने जीवन लक्ष्य की पूर्ति के महान विज्ञान का आविष्कार करते हुए इस बात पर बहुत जोर दिया था* कि व्यक्ति का लौकिक जीवन पूर्ण रीति से सुव्यवस्थित और सुसंस्कृत हो। *आत्म कल्याण का मार्ग यही आरम्भ होता है।* यदि मनुष्य अपने सामान्य जीवन क्रम को सन्तोषजनक रीति से चला न सका तो *आध्यात्मिक जीवन में भी, परलोक में भी उसको सफलता अनिश्चित ही रहेगी।*
🔶 इस तथ्य को दृष्टि में रखते हुए *चार आश्रम की क्रमबद्ध व्यवस्था की गई थी।* आरंभिक जीवन में *शक्ति संचय,* मध्य जीवन में *कुटुम्ब और समाज की* प्रयोगशाला में अपने गुण कर्म स्वभाव का परिष्कार, ढलते जीवन में *लोकहित के लिए परमार्थ* की तैयारी और अन्त में जब सर्वतोमुखी *प्रतिभा एवं महानता विकसित हो जाय* तो उसका लाभ समस्त संसार को देने के लिए *विश्व आत्म परम आत्मा, समष्टि जगत् को आत्म समर्पण करना।* यही ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास की प्रक्रिया है।
🔷 *लौकिक जीवन में अपनी प्रतिभा का परिचय दिये बिना ही लोग पारलौकिक जीवन की कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहते है।* यह तो स्कूल का बहिष्कार करके सीधे एम. ए. की उत्तीर्ण का आग्रह करने जैसी बात हुई। *इस प्रकार व्यतिक्रम से ही आज लाखों साधु संन्यासी समाज के लिए भार बने हुए है।* वे लक्ष्य की प्राप्ति क्या करेंगे, शान्ति और संतोष तक से वंचित रहते है। *इधर की असफलता उन्हें उधर भी असफल ही रखती है।*
.... *क्रमशः जारी*
✍🏻 *पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
📖 *अखण्ड ज्योति,*
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