Friday, 24 August 2018

जिन्दगी जीने की समस्या (अन्तिम भाग)

जिन्दगी जीने की समस्या (अन्तिम भाग)

   वचन का पालन, समय की पाबन्दी, नियमित दिनचर्या, शिष्टाचार, आहार विहार की नियमितता, सफाई व्यवस्था आदि कितनी ही बातें ऐसी है जो सामान्य प्रतीत होते हुए भी जीवन की सुव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पाश्चात्य देशों में इन छोटी बातों पर बहुत ध्यान दिया जाता है, फलस्वरूप भौतिक उन्नति के रूप में उन्हें उसका लाभ भी प्रत्यक्ष मिल रहा है। स्वास्थ्य, समृद्धि और ज्ञान की दृष्टि से पाश्चात्य देशों ने जो उन्नति की है उसमें इन छोटी बातों का बड़ा योग है। इन बातों के साथ-साथ यदि आध्यात्मिक सद्गुणों का समन्वय भी हो जाय तो फिर सोना और सुगन्धि वाली कहावत ही चरितार्थ हो जाती है।

 ऊपर की पंक्तियों में जीवन विद्या के कुछ पहलुओं की थोड़ी चर्चा की गई है। ऐसे कितने ही कोणों से मिलकर एक सन्तुलित जीवन बनता है। यह सन्तुलित जीवन व्यक्ति को स्वस्थ विकास की ओर ले जाता है। और ऐसे ही सुविकसित व्यक्तियों का समाज किसी राष्ट्र को गौरवशाली बनाता है।

   आज चारों ओर अगणित कठिनाइयाँ, परेशानियाँ और उलझने दिखाई पड़ती है उनका कारण एक ही है- अनैतिक, असंस्कृत जीवन। समस्याओं को ऊपर-ऊपर से सुलझाने से काम न चलेगा वरन् भूल कारण का समाधान करना पड़ेगा मनुष्य के जीवन दिव्य देवालयों की तरह पवित्र, ऊँचे और शानदार हों तभी क्लेश और कलह से, शोक और संताप से, अभाव और आपत्ति से छुटकारा मिलेगा। व्यक्ति यदि भगवान के दिव्य वरदान मानव जीवन का समुचित लाभ उठाना चाहता हो तो उसे जिन्दगी जीने की समस्याओं पर विचार करना होगा और सुलझे हुए दृष्टिकोण से अपनी गति विधियों का निर्माण करना होगा।


✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति,

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