स्वामी रामतीर्थ लाहौर के एक कॉलेज में गनिताचार्य थे। एक दिन उन्होंने श्यामपट पर एक सीधी लकीर खींची। फिर अपने छात्रों को कहा कि-- 'इस लकीर को बिना मिटाए, जरा छोटा तो करके दिखाओ।'
छात्र इस अटपटी पहेली में उलझ गए। अंततः स्वामी जी ने ही समधंस्वरूप उस लकीर के साथ एक उससे भी लम्बी लकीर खींच दी। फिर मुस्कुरा कर बोले, 'क्यों पहली लकीर खुद-व-खुद हो गई न छोटी! यही गणित सूत्र अपने व्यवहारिक जीवन मे भी घटा कर देखो। किसी को नुकशान पहुँचाकर या अपमानित करके छोटा करने का प्रयास मत करो। स्वयं अपने व्यक्तित्व का कद ऊँचा करो। अपने आप आसपास का सब कुछ और हर कोई बौना हो जाएगा।'
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