Thursday, 23 August 2018

धन्य है भारतवर्ष, जहाँ एेसे तपस्वी जन्म लेते हैं।

कथावाचक डोंगरेजी ने कहा--
पत्नी के अस्थि-विसर्जन के लिए कर्णफूल मंगलसूत्र बेच दें !

डोंगरेजी महाराज को भारत वर्ष में कथावाचक के रूपमें ख्याति अर्जित कर चुके हैं। डोंगरेजी महाराज कथा से ही करीब एक अरब रूपये दान कर चुके हैं, वही एकमात्र कथावाचक थे जो दान का रूपया आपने पास नही रखते थे और न ही लेते थे। जिस जगह कथा होती थी लाखों रूपये उसी नगर के किसी समाजिक कार्य के लिए दान कर दिया करते थे। अपने अन्तिम प्रवचन गोरखपुर में  कैंसर अस्पताल के लिये एक करोड़ रूपये उनके चौपाटी पर जमा हुए थे।
          उनकी पत्नी आबू में रहती थी, जब उनकी मृत्यु के पांचवें दिन उन्हैं खबर लगी तब वे अस्थियां लेकर गोदावरी में विसर्जित करने मुम्बई के सबसे बड़े धनाड्य आदमी रति भाई पटेल के साथ गये। नासिक में डोंगरेजी ने रतिभाई से कहा कि रति हमारे पास तो कुछ है ही नही, और इनका अस्थि विसर्जन करना है। कुछ तो लगेगा ही क्या करें ? फिर बोले - इसका मंगलसूत्र एवं कर्णफूल हैं, इन्हैं बेचकर जो रूपये मिले उन्हें अस्थि विसर्जन में लगा देते हैं।
          इस बात को अपने लोगों को बताते हुए कई बार रोते - रोते रति भाई ने कहा कि जिस समय यह सुना हम जीवित कैसे रह गये, बस हमारा हार्ट फैल नही हुआ। हम आपसे कह नही सकते, कि हमारा क्या हाल था। जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, वह महापुरूष कह रहे हैं कि पत्नी  के अस्थि विसर्जन के लिये पैसे नही हैं और हम खड़े - खड़े सुन रहे थे ? फूट - फूट कर रोने के अलावा एक भी शब्द मुहँ से नही निकल रहा था।
          धन्य है भारतवर्ष, जहाँ एेसे वैराग्यवान और तपस्वी जन्म लेते हैं।

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