सुप्रभातम्
विचार मंथन
आत्म-निर्माण मानवी कर्तव्य है, पर देव भूमिका की प्राप्ति आत्म-विकास से ही सम्भव है। अपनी अहंता जब संकीर्णता के बंधन तोड़ती हुई विशाल और व्यापक बनती है, लोक-कल्याण ही आत्म-कल्याण लगता है, तब समझना चाहिए हम देव बनें। देवताओं के लिए ही स्वर्ग बना है। हमारा विकसित देवत्व निश्चित रूप से हमें वहाँ पहुँचा देगा, जिसे स्वर्ग कहा जाता है।
स्वर्ग ऊपर है, वहाँ पहुँचने के लिए ऊँचा उठना ही पड़ेगा। चरित्र, दृष्टिकोण और कर्म तीनों को ऊँचा उठाते हुए कोई भी व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में सरलता पूर्वक प्रवेश कर सकता है।
विचार मंथन
आत्म-निर्माण मानवी कर्तव्य है, पर देव भूमिका की प्राप्ति आत्म-विकास से ही सम्भव है। अपनी अहंता जब संकीर्णता के बंधन तोड़ती हुई विशाल और व्यापक बनती है, लोक-कल्याण ही आत्म-कल्याण लगता है, तब समझना चाहिए हम देव बनें। देवताओं के लिए ही स्वर्ग बना है। हमारा विकसित देवत्व निश्चित रूप से हमें वहाँ पहुँचा देगा, जिसे स्वर्ग कहा जाता है।
स्वर्ग ऊपर है, वहाँ पहुँचने के लिए ऊँचा उठना ही पड़ेगा। चरित्र, दृष्टिकोण और कर्म तीनों को ऊँचा उठाते हुए कोई भी व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में सरलता पूर्वक प्रवेश कर सकता है।
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