जय श्री कृष्ण
अधर्मेणैधते तावत्, ततो भद्राणि पश्यति
तत: सपत्नाञ्जयति, समूलस्तु विनश्यति।
भावार्थ-अधार्मिक मनुष्य अधर्म द्वारा पहले बढ़ता है और अधर्म द्वारा कमाई शक्ति, धन, प्रसिद्धि, प्रतिस्ठा से अनेक प्रकार की भलाई करता है,फिर शत्रुओं को भी जीत लेता है, परन्तु बाद में घर- बार समेत पूर्णतः नष्ट हो जाता है।
अधर्मेणैधते तावत्, ततो भद्राणि पश्यति
तत: सपत्नाञ्जयति, समूलस्तु विनश्यति।
भावार्थ-अधार्मिक मनुष्य अधर्म द्वारा पहले बढ़ता है और अधर्म द्वारा कमाई शक्ति, धन, प्रसिद्धि, प्रतिस्ठा से अनेक प्रकार की भलाई करता है,फिर शत्रुओं को भी जीत लेता है, परन्तु बाद में घर- बार समेत पूर्णतः नष्ट हो जाता है।
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