सुप्रभातम्
विचार मंथन
नीति और सदाचरण की मर्यादाओं का उल्लंघन कर्तव्य धर्म की उपेक्षा, दूसरे के प्रति निष्ठुरता और दुष्टता का व्यवहार, इन्द्रियों का स्वेच्छाचार, मन की कुटिलता जिसने अपना ली, उसे नरक तक पहुँचने में कोई रुकावट नहीं रहती। वह फिसलता हुआ, उस स्थान तक पहुँचने और चिरकाल तक रहने में सफल हो सकता है-जिसे नरक कहा जाता है और जहाँ की असत्य मंत्रणाओं का वीभत्स वर्णन किया जा सकता है।
उसे देखना ही नहीं-अनुभव करना भी पूरी तरह अपने हाथ में है। इसके लिए केवल अपनी प्रवृत्तियों को पतनोन्मुख भर बनाना है।
विचार मंथन
नीति और सदाचरण की मर्यादाओं का उल्लंघन कर्तव्य धर्म की उपेक्षा, दूसरे के प्रति निष्ठुरता और दुष्टता का व्यवहार, इन्द्रियों का स्वेच्छाचार, मन की कुटिलता जिसने अपना ली, उसे नरक तक पहुँचने में कोई रुकावट नहीं रहती। वह फिसलता हुआ, उस स्थान तक पहुँचने और चिरकाल तक रहने में सफल हो सकता है-जिसे नरक कहा जाता है और जहाँ की असत्य मंत्रणाओं का वीभत्स वर्णन किया जा सकता है।
उसे देखना ही नहीं-अनुभव करना भी पूरी तरह अपने हाथ में है। इसके लिए केवल अपनी प्रवृत्तियों को पतनोन्मुख भर बनाना है।
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