Sunday, 29 September 2019

प्रथम देवी शैलपुत्री का महात्म्य और श्लोक



नवरात्रि में दुर्गा पूजा के दौरान सबसे पहले शैलपुत्री की ही उपासना की जाती है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण वह शैलपुत्री हुईं। वृषभ शैलपुत्री का वाहन है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। शैलपुत्री को प्रथम दुर्गा कहा जाता है और सती के नाम से भी जानी जाती हैं।

उनकी एक मार्मिक कहानी है। एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया पर भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो उनके पिता दक्ष ने उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया।


यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शिव से हुआ। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं।

मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में यह सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र के दौरान प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है। ध्यान

वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्घ्

पूर्णेदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।

पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिताघ्

प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।

कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्घ् स्तोत्र

प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम

त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम।

सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ्

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।

भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ्

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।

भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ् कवच

ओमकार में शिरपातुमूलाधार निवासिनी।

हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरीघ्

श्रीकाररूपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।

हूंकाररूपातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृतघ्

फट्काररूपातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।

इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके। उपासना मंत्र

वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।

Friday, 2 August 2019

मैं न होता तो क्या होता


अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण उन्हों ने देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर वे गदगद हो गये। वे सोचने लगे। यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो सीता जी को कौन बचाता???

बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है,  मै न होता तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गये कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं।

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है की उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा।

जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।

आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि...
 मै न होता तो क्या होता

Thursday, 27 June 2019

योग और योगासन

योग क्या है:- 

योग हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना। आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यावहारिक स्तर पर, योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है। 
    योग आसन,  प्राणायाम, मुद्रा, बँध, षट्कर्म और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती है। योग जीने का एक तरीका भी है और अपने आप में परम उद्देश्य भी।

योग के लाभ:-

शारीरिक और मानसिक उपचार योग के सबसे अधिक ज्ञात लाभों में से एक है।
योग अस्थमा, मधुमेह, रक्तचाप, गठिया, पाचन विकार और अन्य बीमारियों में चिकित्सा के एक सफल विकल्प है। 
       चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार, योग चिकित्सा तंत्रिका और अंतःस्रावी तंत्र में बनाए गए संतुलन के कारण सफल होती है जो शरीर के अन्य सभी प्रणालियों और अंगों को सीधे प्रभावित करती है। 
अधिकांश लोगों के लिए, हालांकि, योग केवल तनावपूर्ण समाज में स्वास्थ्य बनाए रखने का मुख्य साधन हैं। इनके अलावा योग के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं। इनका विवरण करना आसान नहीं है, क्योंकि यह आपको स्वयं योग अभ्यास करके हासिल और फिर महसूस करने पड़ेंगे।

योग के नियम:-

अगर आप यह कुछ सरल नियमों का पालन करेंगे, तो अवश्य योग अभ्यास का पूरा लाभ पाएँगे:

  • 1) सूर्योदय या सूर्यास्त के वक़्त योग का सही समय है।

  • 2) योग खाली पेट करें। योग करने से 2 घंटे पहले कुछ ना खायें।

  • 3) आरामदायक कपड़े पहनें।
4) शांत वातावरण और सॉफ जगह में योग अभ्यास करें।
  • 5) योग अभ्यास धैर्य और दृढ़ता से करें।
6) अपने शरीर के साथ ज़बरदस्ती बिल्कुल ना करें।
  • 7) योग करने के 30 मिनिट बाद तक कुछ ना खायें। 1 घंटे तक न नहायें।
8) प्राणायाम हमेशा आसन अभ्यास करने के बाद करें।
  • 9) योगाभ्यास के अंत में हमेशा शवासन करें।

योग के प्रकार:- 

योग के 4 प्रमुख प्रकार हैं:- 

1) राज योग: 
  • राज का अर्थ शाही है और योग की इस शाखा का सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंग है ध्यान। इस योग के आठ अंग है, जिस कारण से पतंजलि ने इसका नाम रखा था अष्टांग योग। इसे योग सूत्र में पतंजलि ने उल्लिखित किया है। यह 8 अंग इस प्रकार है: 
  • 1) यम (शपथ लेना), 
  • 2) नियम (आचरण का नियम या आत्म-अनुशासन),
  • 3) आसन,
  • 4) प्राणायाम (श्वास नियंत्रण),
  • 5) प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण),
  • 6) धारण (एकाग्रता),
  • 7) ध्यान (मेडिटेशन),
  • 8)  समाधि (परमानंद या अंतिम मुक्ति)
  •   राज योग आत्मविवेक और ध्यान करने के लिए तैयार व्यक्तियों को आकर्षित करता है। आसन राज योग का सबसे प्रसिद्ध अंग है, यहाँ तक कि अधिकतर लोगों के लिए योग का अर्थ ही है आसन। 

  • कर्म योग: 
     कर्म योग का सिद्धांत यह है कि जो आज हम अनुभव करते हैं वह हमारे कार्यों द्वारा अतीत में बनाया गया है। इस बारे में जागरूक होने से हम वर्तमान को अच्छा भविष्य बनाने का एक रास्ता बना सकते हैं,  जब भी हम अपना काम करते हैं और अपना जीवन निस्वार्थ रूप में जीते हैं और दूसरों की सेवा करते हैं, हम कर्म योग करते हैं। 
     
  • भक्ति योग:
    भक्ति योग भक्ति के मार्ग का वर्णन करता है। सभी के लिए सृष्टि में परमात्मा को देखकर, भक्ति योग भावनाओं को नियंत्रित करने का एक सकारात्मक तरीका है। भक्ति का मार्ग हमें सभी के लिए स्वीकार्यता और सहिष्णुता पैदा करने का अवसर प्रदान करता है। 
     
  • ज्ञान योग:
    अगर हम भक्ति को मन का योग मानते हैं, तो ज्ञान योग बुद्धि का योग है, ऋषि या विद्वान का मार्ग है। इस पथ पर चलने के लिए योग के ग्रंथों और ग्रंथों के अध्ययन के माध्यम से बुद्धि के विकास की आवश्यकता होती है। ज्ञान योग को सबसे कठिन माना जाता है और साथ ही साथ सबसे प्रत्यक्ष। इसमें गंभीर अध्ययन करना होता है और उन लोगों को आकर्षित करता है जो बौद्धिक रूप से इच्छुक हैं।

From www.myupchar.com

Tuesday, 4 June 2019

सांस लेने का सही तरीका


अगर आप सही सांस लेते हैं तो आपका "प्राणमय कोष" स्वस्थ, अखंड और प्राणवान रहता है।


इस तरह का व्यक्ति कभी नहीं थकता। इस तरह का व्यक्ति हमेशा कुछ भी करने के लिए उपलब्ध है। इस तरह का व्यक्ति हमेशा उत्तरदायी, हमेशा क्षण को प्रतिसंवेदित करने के लिए, चुनौती लेने के लिए तैयार है। वह हमेशा तैयार है, आप उसे किसी भी पल के लिए अप्रस्तुत नहीं पाएंगे। ऐसा नहीं है कि वह भविष्य के लिए योजना बनाता है, लेकिन उसके पास इतनी ऊर्जा है कि जो भी होता है उसका प्रतिसंवेदन करने के लिए वह तैयार है। उसके पास "छलकती हुई ऊर्जा" है।


प्राकृतिक सांस लेने को समझना जरूरी है। देखो छोटे बच्चों को, वे स्वाभाविक रूप से सांस लेते हैं। यही कारण है कि छोटे बच्चे ऊर्जा से भरे हुए होते हैं। माता-पिता थक गए हैं, लेकिन वे थके नहीं हैं।


कहां से ऊर्जा आती है? यह प्राणमय कोष से आती है। बच्चा स्वाभाविक रूप से सांस लेता है, और निश्चित रूप से अधिक प्राण और अधिक "ची- ऊर्जा" सांस के द्वारा लेता है, और यह उसके पेट में जमा होती है। पेट इकट्ठा करने की जगह है, भंडार है। बच्चे को देखो, वह सांस लेने का सही तरीका है। जब एक बच्चा सांस लेता है, उसकी छाती पूरी तरह से अप्रभावित होती है। उसका पेट ऊपर और नीचे होता है। मानो वह पेट से सांस ले रहा है। सभी बच्चों का पेट निकला होता है, वह उनके पेट से सांस लेने की वजह से है और वह ऊर्जा का भंडार है।


यह सांस लेने का सही तरीका है, ध्यान रहे, अपनी छाती का बहुत ज्यादा उपयोग नहीं करना है। कभी-कभी यह आपातकालीन समय में किया जा सकता है। आप अपने जीवन को बचाने के लिए दौड़ रहे हैं, तब छाती का उपयोग किया जा सकता है। यह एक आपातकालीन उपाय है। तो आप उथले, तेजी से सांस लेने का उपयोग कर सकते हैं और दौड़ सकते हैं। लेकिन आमतौर पर छाती का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। और एक बात याद रखनी जरूरी है कि छाती आपात स्थितियों के लिए ही होती है क्योंकि आपात स्थिति में स्वाभाविक रूप से सांस लेना मुश्किल है; क्योंकि अगर आप स्वाभाविक रूप से सांस लेते हैं तो आप इतने शांत और मौन होते हो कि आप दौड़ नहीं सकते, आप लड़ नहीं सकते। आप इतने शांत और केंद्रित होते हैं--एकदम बुद्ध जैसे। और एक आपात स्थिति में--जैसे घर में आग लगी है--यदि आप स्वाभाविक रूप से सांस लेंगे तो आप कुछ भी बचा नहीं पाएंगे। या जंगल में एक बाघ आप पर कूदता है और आप स्वाभाविक रूप से सांस लेते रहें तो आप फिक्र ही नहीं करेंगे। आप कहेंगे, 'ठीक है, उसे करने दो जो भी वह चाहता है।' आप अपने खुद को बचाने के लिए सक्षम नहीं होंगे।

तो प्रकृति ने एक आपातकालीन उपकरण दिया है, छाती एक आपातकालीन उपाय है। जब आप पर एक बाघ हमला करता है, तो आपको प्राकृतिक सांस छोड़ देनी होती है और आप को छाती से सांस लेनी होती है। तब दौड़ने के लिए , लड़ने के लिए, ऊर्जा को तेजी से जलाने के लिए आपके पास अधिक क्षमता होगी। और आपात स्थिति में केवल दो ही विकल्प होते हैं: भाग जाना या लड़ाई करना। दोनों के लिए बहुत उथली लेकिन तीव्र ऊर्जा की जरूरत है, उथली लेकिन एक बहुत परेशान, तनावग्रस्त स्थिति।


अगर आप लगातार सीने से सांस लेते हैं तो, आपके मन में तनाव होगा। अगर आप लगातार सीने से सांस लेते हैं, आप हमेशा भयभीत होंगे क्योंकि सीने से सांस लेना खतरनाक परिस्थितियों के लिए ही होता है। और यदि आपने इसे एक आदत बनाया है तो आप लगातार भयभीत, तनावग्रस्त, हमेशा भागने की तैयारी में होंगे। वहां दुश्मन नहीं है, लेकिन आप दुश्मनों की कल्पना करेंगे। इसी तरह " पैरानोया, व्यामोह" निर्मित होता है।


'एक बच्चे को देखें और वही प्राकृतिक सांस है, और उसी तरह सांस लें । जब आप सांस लें तब पेट ऊपर आए और जब आप सांस छोड़े तब पेट नीचे जाए। और यह एक ऐसी लय हो कि यह आपकी ऊर्जा में लगभग एक गीत बन जाता है, एक नृत्य ताल के साथ, सामंजस्य के साथ--और आप इतने निश्चिंत महसूस करेंगे, इतने जीवंत, जीवन-शक्ति से ओतप्रोत कि आप कल्पना नहीं  कर सकते कि ऐसी जीवन-शक्ति हो सकती है।'


 योगा: दि पाथ ऑफ लिबरेशन

Saturday, 1 June 2019

याद कर लो

चले थे साथ मिलकर हम कभी 
तुम वो जमाना याद कर लो 
बिछड़ गए हैं हम अभी 
पर तुम वो जमाना याद कर लो 
हाथो में लेकर हाथ 
बातें करते थे सारी रात 
न जाने कहाँ चली गयी वो शाम 
एक बार फिर वो शाम याद कर लो 
फिर आ जाओ मेरे पास 
रंगीन कर दो मेरी सुबह और शाम 
अपनी बाहों में भर के मुझे 
मेरे शरीर में जीवन का संचार कर दो 
चली गयी हो जब से बेजान हो गया हूँ 
तेरी राह तकते -तकते चट्टान हो गया हूँ 
आकर पास मेरे मुझे अपना बना लो 
विक्रान्त टूट जाये इससे पहले इसे अपना बना लो।

Friday, 31 May 2019

आगे ही अब बढ़ते जाओ

चल पड़े हो अगर बाबा तो, 
आगे ही अब बढ़ते जाओ, 
सोई हुई इस जनता को, 
अब फिर से जीना सिखलाओ, 
बहुत हो चुकी बर्बादी, 
इंसान जला सामान जला, 
श्मसान हो चुके गाँव- नगर को, 
फिर से नगर बना दो बाबा, 
अत्याचारी को सदाचार का, 
अब पाठ पढ़ा दो बाबा, 
अन्तरमन में दबी चिंगारी को, 
अब आग बनाओ जल्दी से, 
अत्याचार का अन्त करके, 
इंसान को इंसान बनाओ जल्दी से, 
धर्म का ऐसा हुँकार करो, 
जो जन- जन को दिखाई और सुनाई दे, 
जन - जन के भीतर का पाप मरे, 
बस इंसान ही इंसान दिखाई दे, 
अब इंसान को इंसान बना दो बाबा, 
जीना सबको सिखा दो बाबा।।

दिल चुराती हो मेरा/ Dil Churati Ho Mera

आती हो जब तुम सामने 
तो दिल मचल जाता है मेरा 
देखती हो जब पलकें उठाके 
तो दिल ठहर जाता है मेरा 
देखकर हो जब मुस्कुराती 
तो दिल बहक जाता है मेरा 
देखती हो जब तिरछी नजर से 
दिल घायल हो जाता है मेरा 
शरमा के हो जब नजरें झुकाती 
तो दिल चुराती हो मेरा।

Saturday, 18 May 2019

चलो दूरी मिटायें हम/ Chalo Duri Mitaye Hum

जब से तुमसे मिला हूँ मैं,
तेरी यादों में खोया हूँ,
उस दिन के सारे लम्हों को,
अपने दिल में बसाया हूँ,
सोचता हूँ तुमसे मिलकर,
बतलाऊँ अपनी हालात मैं,
या आंखों से सारी बात करूँ,
मुँह से कुछ भी न बोलू मैं,
हर लम्हा तुमसे मिलने की,
आस में मेरा बीत रहा,
क्या बोलूंगा तुमसे मिलकर,
हर पल विक्रान्त ये सोच रहा,
छोड़ो मेरी इस हालत को,
अपनी कहो तुम कैसी हो,
 नींद समय पर आती है,
या तड़प रही मेरे जैसी हो,
अगर हालत मेरे जैसे है,
तो चलो दूरी मिटाये हम,
मिलें जो अगली बार कभी,
तो एक दूजे में खो जायें हम।




Jab se tumse mila hun mai, 
Teri yaadon me khoya hun, 
Us din ke sare lamho ko, 
Apne dil me basaya hun, 
Sochta hun tumse milkar, 
Batlau apni halat mai, 
Ya aankho se sari baat karu, 
Muh se kuchh bhi na bolu mai,
Har lamha tumse milne ki, 
Aas me mera beet raha, 
Kya bolunga tumse milkar,
Har pal VIKRANT ye soch raha,
Chhodo meri is halat ko, 
Apni kaho tum kaisi ho, 
Need samay par aati hai, 
Ya tadap rahi meri jaisi ho, 
Agar halat mere jaise hain, 
To chalo duri mitaye hum,
Mile jo agli baar kabhi, 
Ek duje me kho jaye hum.

बहुत याद तुम्हारी आती है!/ Bahut yaad tumhari aati hai

बहुत याद तुम्हारी आती है,
जब घर में अकेला होता हूँ,
तन्हाई में जब खोता हूँ,
हो जाता हूँ बेचैन जब मैं
तब याद तुम्हारी आती है।

जब दो युगल प्रेमी को देखता हूँ,
तुम्हारी यादो में खोता हूँ,
भूल जाता हूँ दुनिया को मैं,
केवल याद तुम्हारी आती है।

न चाह कर भी तुमसे दूर हूँ मैं,
दुनियादारी में मजबूर हूँ मैं,
विक्रान्त जल्दी आएगा पास तेरे,
क्योंकि बहुत याद तुम्हारी आती है।
बहुत याद तुम्हारी आती है।

Bahut yaad tumhari aati hai, 
Jab ghar me akela hota hun, 
Tanhai me jab khota hun, 
Ho jata hun bechain jab mai, 
Tab yaad tumhari aati hai,

Jab do yugal premi ko dekhta hun, 
Tumhari yaadon me khota hun, 
Bhul jata hun duniya ko mai, 
Keval yaad tumhari aati hai,

Na chah kar bhi tumse dur hun mai, 
Duniyadari me majbur hun mai, 
Vikrant jaldi aayega paas tere, 
Kyuki yaad tumhari aati, 
Bahut yaad tumhari aati hai.

माँ का चेहरा मुझको भाता है।



वो चेहरा मुझको भाता है,
मेरे तन-मन और रोम-रोम में
जो उत्साह जगाता है,
वो चेहरा मुझको भाता है,
जब आया था दुनिया में,
तब सिर्फ उसी का सहारा था,
मेरे सुख - दुःख का ख्याल किया,
मुझको खूब संवारा था,
मेरा हाथ पकड़ कर अंगना में,
चलना उसने ही सिखाया था,
अच्छे और बुरे का मुझको,
ज्ञान उसी ने कराया था,
न जाने कितने व्रत उपवास,
किये है उसने मेरी खातिर,
खुद भूखी सोई होगी वह,
पर मुझको खूब खिलाया था,
मेरे रग - रग को जिसने,
अपने संस्कारो से किया सिंचित,
विक्रान्त कैसे भूले उस माँ को,
जिनसे इस दुनिया को पहचाना है,
जीवन में लगते ठोकर से,
माँ की दुआओ ने ही बचाया है,
जब भी राहों में उलझा हूँ,
तब राह भी माँ ने दिखाया है,
इसलिए माँ का चेहरा मुझको भाता है,
मेरे तन- मन और रोम- रोम में,
वह ही उत्साह जगाता है,
माँ का चेहरा मुझको भाता है।

Thursday, 16 May 2019

जीवन जीना सीख लिया

एक लड़की आई बीवी बनकर,
तो उसका तरीका मैंने सीख लिया,
समय पर उठना, खाना-पीना,
समय पर सोना सीख लिया,
पर माँ के संस्कारो को,
हम भुला नहीं सकते,
इन्ही संस्कारो से तो,
मैंने हर किसी को अपनाना सीख लिया,
बीवी है कौन, और जीवन में होती है क्या,
ये मुझे बताया माँ ने मेरी,
जीवन के सुख दुःख में,
मैंने हर पल खुश रहना सीख लिया,
बीवी का जो साथ मिले तो,
घर में खुशहाली आये,
साल में एक बार नहीं,
हर दिन दीवाली आये,
घर में सोच समझकर बात करो,
तो सारा रिश्ता चल जाता है,
माँ की बात मान कर विक्रान्त ने,
खुद पर संयम रखना सीख लिया,
माँ के दिए ज्ञान से मैंने
दुनिया में रहना सीख लिया,
मैंने जीवन जीना सीख लिया।

आजमाने चलेंगे

एक दिन किसी ने यूँ ही सोचा,
        प्यार को आजमाने चलेंगे।
प्यार है या है कोई दिखावा,
        इसका पता हम लगाने चलेंगे।
कर लिया दिल में पक्का इरादा,
         अन्त में घर से बाहर निकला।
जल्दी ही पहुँच गया पास उसके,
          जिसे   आजमाने   चले   थे।
साथ में दो कन्या को लेकर,
         उसके सामने से  जब गुजरा।
वो तड़प उठी देखकर ऐसे,
    मछली तड़पती है जल बिन जैसे।
तब से जब भी है वो मिलती,
         मुँह घुमाकर वो है निकलती।
न वो मुझसे कुछ है कहती,
          और न ही मेरा कुछ सुनती।
कोई उसको जाकर बताये,
        मेरे दुःख को उसे कोई सुनाये।
अपने प्यार को आजमा कर,
    कितना दुःखी हूँ ये कोई समझाये।
विक्रान्त का भाई ये है कहना,
          प्यार को न कभी आजमाना।
प्यार तो है भरोसे का नाम,
    इसको नहीं है आजमाने का काम।
प्यार पर जो न करते हैं भरोसा,
        प्यार में वह ही पाते हैं धोखा।
आज से कोई कभी न कहना,
       प्यार को आजमाने चलेंगे।।

Tuesday, 7 May 2019

भगवान परशुराम जी की जीवनी

www.hindihaat.com से साभार
भगवान परशुराम जी की जीवनी
भगवान परशुराम भारत की ऋषि परम्परा के महान वाहक थे. उनका शस्त्र और शास्त्र दोनों पर समान अधिकार था. वे भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं. उनका प्रभाव त्रेता युग से शुरू होकर द्वापर तक जाता है. उनका जीवन एक आदर्श पुरूष का जीवन था.

भगवान परशुराम का जन्म 

भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थी. पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म पुत्रेष्ठि यज्ञ के बाद देवराज इंद्र के वरदान के बाद हुआ था. परशुराम जी का जन्म वैशाख शुक्ल की तृतीया को हुआ. इसलिए अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम की जयन्ती मनाई जाती है. उनके पितामह भृगु ने उनका नाम अनन्तर राम रखा जो शिव द्वारा दिए गए अस्त्र परशु को धारण करने की वजह से परशुराम हो गया.

परशुराम जीवन परिचय

परशुराम जी शिक्षा-दिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं महर्षि ऋचीक के आश्रम में हुई. महर्षि ऋचीक तो अपने शिष्य की योग्यता से इतने प्रसन्नत हुए कि उन्होंने परशुराम जी को सांरग धनुष उपहार में दिया. उनकी प्रतिभा और दैवीय गुणों से प्रभावित होकर ऋषि कष्यप ने उन्हें अविनाशी वैष्णव मंत्र प्रदान किया. भगवान शंकर की उन्होंने अराधना की और शिव ने उन्हें विद्युदभि नाम का परशु प्रदान किया. भगवान शिव से उन्हें त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्रोत और कल्पतरू मंत्र भी प्राप्त हुआ.

गुरू परशुराम

परशुराम ने जी ने अपनी अद्भुत शस्त्र विद्या से समकालीन कई गुणवान षिष्यों को युद्ध कला में पारंगत किया. उनके सबसे योग्य शिष्य गंगापुत्र भीष्म रहे जिन्हें पूरा भारत आदर की दृष्टि से देखता है. इसके अलावा द्रोण और कर्ण भी  उनके षिष्य थे.
भगवान परशुराम का उल्लेख दोनो महान भारतीय महाकाव्यों रामायण और गीता में मिलता है. तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में उनके और लक्ष्मण के बीच हुआ संवाद बहुत पठनीय और लोकप्रिय है.
परशुराम जी की पूजा पूरे भारत में होती है. हर वर्ग उनको पूजनीय मानता है. एक मान्यता के अनुसार भारत के ज्यादातर गांव परशुराम जी ने ही बसाए थे. पूरे उत्तर भारत से लेकर गोवा, केरल और तमिलनाडु तक आपको परशुराम जी की प्रतिमा के दर्शन होंगे.

परशुराम जी और क्षत्रियों का विनाश

परशुराम जी ने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रियों से विहिन किया, ऐसी मान्यता है. इस कथा के अनुसार हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन या कार्तवीयअर्जुन ने घोर तपस्या की और भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर लिया. भगवान दत्तात्रेय ने उसे एक हजार भुजाए और युद्ध में अपराजित होने का वरदान दे दिया.
एक बार राजा सहस्त्रार्जुन वन में आखेट करता हुआ अपनी सेना के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा. वहां उसने ऋषि की कामधेनू गाय को देखा तो उसने बलपूर्वक उसे जमदग्नि से छीन ले गया. इस बात का पता जब परशुराम को चला तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन को युद्ध के लिए ललकारा और उसकी सभी भुजाओं को अपनी फरसे से काट डाला और उसका वध कर दिया.
सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने इसका प्रतिशोध लेने के लिए परशुराम जी की अनुपस्थिति में महर्षि जमदग्नि के आश्रम पर आक्रमण कर दिया और जमदग्नि की हत्या कर दी. परशुराम जी की माता रेणुका भी अपने पति के साथ सती हो गई.
कुपित परशुराम ने हैहयवंशीय राजा के महिष्मति नगर पर आक्रमण कर सभी क्षत्रियों का विनाश कर दिया. अपने क्रोध को शांत करने के लिए उन्होंने इस पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय विहिन कर दिया.

भगवान परशुराम जी की कथाएं

परशुराम जी की अनेक कथाएं प्रचलित है. एक कथा के अनुसार उन्होंने भगवान गणेश के साथ भी युद्ध किया और इस घोर युद्ध में उनके फरसे से भगवान गणेष का एक दांत टूट गया और वे एक दंत कहलाए.
राम और परशुराम की कथा रामायण में आती है, जब भगवान राम ने सीता स्वयंवर के दौरान शिव का धनुष भंग किया तब परशुराम जी और लक्ष्मण जी के बीच विवाद हुआ. भगवान राम ने क्षमा याचना और अपने मीठे शब्दों से उनका क्रोध शांत किया. एक कथा के अनुसार भगवान राम को उनका धनुष परशुराम जी ने ही प्रदान किया था।

परशुराम की प्रतिज्ञा

महाभारत में भी परशुराम जी की कथा कई बार आती है, जिनमें से दो कथाएं बहुत प्रसिद्ध है. एक कथा भीष्म के साथ उनके युद्ध की है. परशुराम जी ने राजकुमारी अंबा को न्याय दिलवाने के लिए भीष्म के साथ घोर युद्ध किया लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला और आखिर में वे अंबा को न्याय नहीं दिलवा सके तो उन्होंने शपथ ली कि वे भविष्य में किसी भी क्षत्रिय को युद्ध कला की शिक्षा नहीं देंगे.
महाभारत की दूसरी प्रमुख कथा कर्ण की है. जब कर्ण को उन्होंने अपना शिष्य बनाया और कर्ण की वास्तविकता जानने के बाद उसे श्राप दिया कि जब उसे उनकी शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तभी वह इस शिक्षा को भूल जाएगा।

भगवान परशुराम और कल्कि अवतार

हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम जी कलियुग में अवतार लेने वाले कल्कि अवतार के भी गुरू बनेंगे और भगवान विष्णु के दसवें अवतार को युद्ध कौशल की शिक्षा देंगे।

भगवान परशुराम की शिक्षा

भगवान परशुराम को उनकी पितृभक्ति के लिए जाना जाता है. उनकी शिक्षा है कि माता-पिता का आदर सर्वोच्च है.भगवान परशुराम प्रकृति पोषक थे और प्रकृति का किसी भी प्रकार का विरोध करना वे ईष्वर का विरोध मानते थे.महिला का सम्मान एक सद्पुरूष के लिए अनिवार्य गुण मानते थे और इसी वजह से अंबा का सम्मान लौटाने के लिए अपने सबसे प्रिय शिष्य भीष्म के साथ युद्ध किया।

परशुराम के अन्य नाम

परशुराम जी को अन्नतर राम, जमदग्नि के पुत्र होने के कारण जामदग्न्य, गोत्र के कारण भार्गव और ब्राह्णश्रेष्ठ भी कहा जाता है.
परशुराम मंत्र
भगवान परशुराम मंत्र को परशुराम गायत्री मंत्र के नाम से भी जाना जाता है. इस मंत्र का विधिपूर्वक जप करने से मनुष्य को अपने दुखों से छुटकारा मिलता है और कठिनाइयों से लड़ने के लिए साहस का संचार होता है. मंत्र इस प्रकार है—

    ‘ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।’
    ‘ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।’
    ‘ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।’

Sunday, 28 April 2019

ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की

मुन्सी प्रेमचंद जी की एक सुंदर कविता

ख्वाहिश नहीं मुझे
मशहूर होने की,

        आप मुझे पहचानते हो
        बस इतना ही काफी है.


अच्छे ने अच्छा और
बुरे ने बुरा जाना मुझे,

        क्यों की जिसकी जितनी जरूरत थी
        उसने उतना ही पहचाना मुझे.


जिन्दगी का फलसफा भी
कितना अजीब है,

        शामें कटती नहीं और
        साल गुजरते चले जा रहें है.


एक अजीब सी
दौड है ये जिन्दगी,

        जीत जाओ तो कई
        अपने
अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं.


बैठ जाता हूँ
मिट्टी पे अकसर,

        क्योंकि मुझे अपनी
        औकात अच्छी लगती है.

मैंने समंदर से
सीखा है जीने का सलीका,

        चुपचाप से बहना और
        अपनी मौज मे रेहना.


ऐसा नहीं की मुझमें
कोई ऐब नहीं है,

        पर सच कहता हूँ
        मुझमें कोई फरेब नहीं है.


जल जाते है मेरे अंदाज से
मेरे दुश्मन,

              क्यों की एक मुद्दत से मैंने,
.... न मोहब्बत बदली
      और न दोस्त बदले हैं.


एक घडी खरीदकर
हाथ मे क्या बांध ली

        वक्त पीछे ही
        पड गया मेरे.

सोचा था घर बना कर
बैठुंगा सुकून से,

        पर घर की जरूरतों ने
        मुसाफिर बना डाला मुझे.


सुकून की बात मत कर
ऐ गालिब,

        बचपन वाला इतवार
        अब नहीं आता.


जीवन की भाग दौड मे
क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?

        हँसती-खेलती जिन्दगी भी
        आम हो जाती है.


एक सवेरा था
जब हँसकर उठते थे हम,

        और आज कई बार बिना मुस्कुराये
        ही शाम हो जाती है.


कितने दूर निकल गए
रिश्तों को निभाते निभाते,

        खुद को खो दिया हम ने
        अपनों को पाते पाते.


लोग केहते है
हम मुस्कुराते बहुत है,

        और हम थक गए
        दर्द छुपाते छुपाते.


खुश हूँ और सबको
खुश रखता हूँ,

        लापरवाह हूँ फिर भी
        सब की परवाह करता हूँ.



मालूम है
कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी

        कुछ अनमोल लोगों से
        रिश्ता रखता हूँ।

Friday, 19 April 2019

भगवान श्री राम और श्री हनुमान जी का संवाद


बहुत सुन्दर और ज्ञान वर्धक प्रसंग...

पहली बात: हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है:- ''प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था, और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ''।

भगवान बोले:- वो कैसे ...?

हनुमान जी बोले:- वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी है, मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया।
कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए।
उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा।
सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर।

शिक्षा :-
हम भगवान का नाम तो लेते है पर भरोसा नही करते, भरोसा करते भी है तो अपने पुत्रो एवं धन पर, कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, धन ही साथ देगा।
उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे है वे है, पर हम भरोसा नहीं करते।
बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते है।

दूसरी बात प्रभु...!

बाण लगते ही मैं गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ।
मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया।

शिक्षा :-
हमारी भी यही सोच है कि, अपनी गृहस्थी का बोझ को हम ही उठाये हुए है।
जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हमारा परिवार चलता ही है।

जीवन के प्रति जिस व्यक्ति कि कम से कम शिकायतें है, वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।
 जय श्री सीताराम जय श्री बालाजी



⛳जय श्री राम⛳

Thursday, 18 April 2019

आत्मसुधार का प्रयास


          चाहे गलती स्वयं की हो मगर दूसरों को दोष देना, यही आज के इस आदमी की फितरत बन गयी है। आदमी गिरता है तो पत्थर को दोष देता है, डूबता है तो पानी को दोष देता है और कुछ नहीं कर पाता तो क़िस्मत को दोष देता है।
         दूसरों को दोष देने का अर्थ ही मात्र इतना सा है कि स्वयं की गलती को स्वीकार करने का सामर्थ्य न रख पाना और अपने में सुधार की सारी संभावनाओं को स्वयं अपने हाथों से कुचल देना।
         खुद के जीवन में दोष होने से भी ज्यादा घातक है, दूसरों को दोष देना क्योंकि इसमें समय का अपव्यय व आत्मप्रवंचना दोनों होते हैं। अतः आत्मसुधार का प्रयास करो, जहाँ आत्म सुधार की प्रवत्ति है, वहीँ परमात्मा से मिलन भी है।

         

Wednesday, 17 April 2019

ज़िन्दगी अवसरों से भरी हुई है


एक नौजवान आदमी एक किसान की बेटी से शादी की इच्छा लेकर किसान के पास गया ।

किसान ने उसकी ओर देखा और कहा,
तुम मेरे खेत में जाओ,
मैं एक एक करके तीन बैल
छोड़ने वाला हूँ ।
अगर तुम तीनों बैलों में से किसी भी एक बैल की पूँछ पकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूंगा ।

नौजवान खेत में बैल की पूँछ पकड़ने के लिए खडा हो गया ।

किसान ने खेत में स्थित घर का दरवाजा खोला,
और एक बहुत ही बड़ा और खतरनाक बैल उसमे से निकला,
नौजवान ने ऐसा बैल पहले कभी नहीं देखा था,
उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का इंतज़ार करेगा,
और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसके पास से होकर निकल गया ।

दरवाजा फिर खुला,
आश्चर्यजनक रूप से इस बार पहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला,
नौजवान ने सोचा कि इससे तो पहला वाला बैल ठीक था फिर उसने एक ओर होकर बैल को निकल जाने दिया ।

दरवाजा तीसरी बार खुला,
नौजवान के चहरे पर मुस्कान आ गई,
इस बार एक छोटा और मरियल बैल निकला,
जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा, नौजवान ने उसकी पूँछ पकड़ने के लिए मुद्रा बना ली ताकि उसकी पूँछ सही समय पर पकड़ ले पर उस बैल की पूँछ थी ही नहीं ।

कहानी से सीख
ज़िन्दगी अवसरों से भरी हुई है,
कुछ सरल हैं और कुछ कठिन ।

पर अगर एक बार अवसर गवां दिया तो फिर वह मौका दुबारा नहीं मिलेगा ।

अतः हमे हमेशा प्रथम अवसर को ही हासिल करने का प्रयास करना चाहिए ।।

Tuesday, 16 April 2019

आत्मीय एहसास

रामायण कथा का एक अंश

जिससे हमे सीख मिलती है "एहसास" की...

    


*श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया* चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे,

राह बहुत *पथरीली और कंटीली* थी !

की यकायक *श्री राम* के चरणों मे *कांटा* चुभ गया !


श्रीराम *रूष्ट या क्रोधित* नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से *अनुरोध* करने लगे !

बोले- "माँ, मेरी एक *विनम्र प्रार्थना* है आपसे, क्या आप *स्वीकार* करेंगी ?"


*धरती* बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !"


प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप *नरम* हो जाना !

कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना !

मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे *आघात* मत करना"


श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई !

पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ?

जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें ?

फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी *व्याकुलता* क्यों ?"


*श्री राम* बोले- "नही...नही माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसके *हृदय* को विदीर्ण कर देगा !"


*"हृदय विदीर्ण* !! ऐसा क्यों प्रभु ?",

*धरती माँ* जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं !


"अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि...इसी *कंटीली राह* से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये *शूल* उनके पगों मे भी चुभे होंगे !

मैया, मेरा भरत कल्पना मे भी मेरी *पीड़ा* सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप *कमल पंखुड़ियों सी कोमल* बन जाना..!!"


अर्थात 

*रिश्ते* अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं ।

जहाँ *गहरी आत्मीयता* नही, वो रिश्ता शायद नही परंतु *दिखावा* हो सकता है ।


इसीलिए कहा गया है कि...

*रिश्ते*खून से नहीं, *परिवार* से नही,

*मित्रता* से नही, *व्यवहार* से नही,

बल्कि...

सिर्फ और सिर्फ आत्मीय एहसास से ही बनते और निर्वहन किए जाते हैं।

जहाँ एहसास ही नहीं, 

आत्मीयता ही नहीं ..

वहाँ अपनापन कहाँ से आएगा l

          

हम सबके लिए प्रेरणास्पद लघुकथा

Wednesday, 6 February 2019

माँ सीता की रसोई और हनुमान जी का भोजन



घटना उस समय की है जब श्री राम और देवी सीता वनवास की अवधि पूरी करके अयोध्या लौट चुके हैं। अन्य सब लोग तो श्री राम के राज्याभिषेक के उपरांत अपने अपने राज्यों को लौट गए, किंतु हनुमान जी ने श्री राम के चरणों में रहने को ही जीवन का लक्ष्य माना।

एक दिन देवी सीता के मन में आया कि हनुमान ने लंका में आकर मुझे खोज निकाला और फिर युद्ध में भी श्री राम को अनुपम सहायता की, अब भी अपने घर से दूर रह कर हमारी सेवा करते हैं, तो मुझे भी उनके सम्मान में कुछ करना चाहिए। यह विचार कर उन्होंने हनुमान को अपनी रसोई से भोजन के लिए आमंत्रित कर डाला माँ स्वयं पका कर खिलाएँगी आज अपने पुत्र हनुमान को।

सुबह से माता रसोई में व्यस्त हैं हर प्रकार से हनुमान जी की पसंद के भोजन पकाए जा रहे हैं। एक थाल में मोतीचूर के लड्डू सजे हैं, तो दुसरे में जलेबियाँ पूड़ी और कचोरी और बूंदी भी पकाए जा रहे हैं आज किसी को भोजन की आज्ञा नहीं जब तक कि हनुमान न खा लें प्रभु राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सभी प्रतीक्षा में हैं कि कब हनुमान भोजन के लिए आयें और कब हमारी भी पेट पूजा हो।

दोपहर हुई और  निमंत्रण के समय अनुसार पवनपुत्र का आगमन हुआ बड़े शौक से आ कर माता की चरण वन्दना की और अनुमति पाकर आसन पर विराजे माँ परोसने लगी और पुत्र खाने लगा। लायो माता लायो पूड़ी दो, कचोरी दो, लड्डू दो हनुमान मांग मांग कर खा रहे हैं और माता रीझ कर खिला रही हैं थाल के थाल सफाचट होते जा रहे हैं पर हनुमान की तृप्ति नहीं हुई माता ने जितना पकाया था सब समाप्त, किंतु अभी पेट कहाँ भरा लल्ला का?

माता सीता पुनः भागी रसोई की ओर, पुनः चूल्हा जलाया, पकाना आरम्भ किया, उधर हनुमान पुकार रहे हैं, माता बहुत स्वादिष्ट भोजन है, और दीजिये, अभी पेट नहीं भरा माता पकाती जा रही हैं, हनुमान खाते जा रहे हैं भण्डार का सारा अन्न समाप्त माता पर धर्मसंकट आन पडा है, क्या करें? भागी गयीं श्री राम प्रभु से सहायता की गुहार करने प्रभु आप ही कुछ कीजिये, और भंडार का प्रबंध कीजिये, ये हनुमान तो सब चट किये जा रहा है।

श्री राम सुन कर हंस दीये, बोले, सीते, तुमने मेरे भक्त को अब तक नहीं पहचाना उसका पेट इन सबसे नहीं भरने वाला, उसे कुछ और चाहिए देवी ने पूछा, क्या है वो वस्तु जो मेरे हनुमान लल्ला को तृप्ति देगी? रामजी बोले चलो मेरे संग, मंदिर में ले गए, वहां तुलसी माँ विराजित है एक पत्ता हाथ में लिया, आँख बंद करके उसमें अपने स्नेह, अपने आशीष, अपनी कृपा का समावेश किया, और देवी को पकड़ा दिया, जायो देवी अपने पुत्र को संतुष्ट करो।

माता भी समझ चुकी अब तो अपने पुत्र की इच्छा को सौम्य मुस्कान लिए लौटीं रसोई की ओर, बोलीं, पुत्र हाथ बढायो और वो ग्रहण करो जिसकी इच्छा मन में लिए तुम मेरा पूरा भण्डार निपटा गए हनुमान जी ने हाथ बढाया और अभिमंत्रित तुलसीदल ग्रहण किया मुंह में रखते ही चित्त प्रसन्न, और आत्मा तृप्त आसन से उठ खड़े हुए, बोले माँ, आनंद आ गया आपने पहले ही दे दिया होता तो इतना परिश्रम न करना पड़ता आपको।

माता हंस पडी, बोलीं, पुत्र तुम्हारी महिमा केवल तुम्हारे प्रभु जानते हैं वो भगवान् और तुम उनके भक्त, मैं माता तो बीच में यूं ही आ गयी हनुमान ने चरणों में प्रणाम किया, बोले, माँ आप बीच में हो तो ही प्रसाद मिला है आज मुझे, आपके श्री कर से माता के नयनों में आनंद के अश्रु चमक आये, और मुख से अपार आशीष अपने हनुमान लल्ला के लिए।

जय श्री राम

Sunday, 20 January 2019

परोपकार हमेशा आपके लिए अच्छा फल लेकर के आती है।

आज हम आपको एक बेहद ही दिलचस्प कहानी बताने जा रहे हैं। दरअसल कुछ बरस पहले एक गांव में कुछ लोग एक सांप को मार रहे थे और उनका इरादा सांप को मौत के घाट उतार देने का लग रहा था। लेकिन तभी वहां एक संत आ गए और उन्होंने गांव वालों से कहा कि इस सांप को छोड़ दो और इसको जाने दो।

गांव वालों ने संत को बोला कि अगर हम इसे छोड़ देंगे तो ये हमें काट लेगा। फिर संत ने कहा कि अगर आप लोग इसे मारेंगे नहीं और परेशान नहीं करेंगे तो ये आपको बिना वजह नहीं काटेगा। गांव वालों ने संत की बात मान ली और उस सांप को छोड़ दिया और अपने-अपने घर चले गए। संत भी अपने आश्रम आ गए।

फिर अगले दिन सुबह-सुबह संत नदी पर स्नान के लिए जा रहे थे। चूंकि उस वक्त ब्रह्म मुहूर्त था इसलिए उस समय अंधेरा था। तभी संत की नज़र एक सांप पर पड़ी। संत ने बहुत कोशिश की उस सांप को भगाने की लेकिन सांप वहां से हिला नहीं।

फिर संत ने अपना रास्ता बदल लिया और दूसरे घाट पर स्नान के लिए चले गए। लौटते समय उजाला हो गया था और वे उसी रास्ते ले आश्रम लौट रहे थे जहां उन्हें सांप दिखा था। चूंकि दिन हो गया था तो रास्ते में उन्होंने देखा कि जहां सांप बैठा था, वहां से कुछ ही दूरी पर एक बड़ा गड्ढा हो गया है।

संत समझ गए की अगर सुबह यहां सांप न होता तो वे उसी रास्ते पर आगे बढ़ते तो वो अंधेरे में इस गड्ढे में गिर सकते थे। संत ने परमात्मा को धन्यवाद दिया कि एक सांप द्वारा उनकी रक्षा हुई।

बीता दें कि इस छोटी सी कथा की सीख यह है कि किसी भी प्राणी पर की गई दया और परोपकार हमेशा आपके लिए अच्छा फल लेकर के आती है। माना जाता है कि स्वयं भगवान भी ऐसे लोगों की मदद करते हैं जो दूसरों पर दया करते हैं और अच्छे काम करते हैं।

From ucbrowser

Monday, 14 January 2019

आध्यात्मिक जीवन

एक गाँव में एक बुद्धिमान व्यक्ति रहता था। उसके पास 19 ऊंट थे। एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:

मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को, उसका एक चौथाई मेरी बेटी को, और उसका पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।

सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?

19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार फिर??

सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया

वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।

सबने पहले तो सोचा कि एक वो पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।

19+1=20 हुए।

20 का आधा 10 बेटे को दे दिए।

20 का चौथाई 5 बेटी को दे दिए।

20 का पांचवाँ हिस्सा 4 नौकर को दे दिए।

10+5+4=19 बच गया एक ऊँट जो बुद्धिमान व्यक्ति का था वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।

सो हम सब के जीवन में 5 ज्ञानेंद्रियाँ, 5 कर्मेन्द्रियाँ, 5 प्राण, और 4 अंतःकरण चतुष्टय( मन,बुद्धि, चित्त, अहंकार) कुल 19 ऊँट होते हैं। सारा जीवन मनुष्य इन्हीं के बँटवारे में उलझा रहता है और जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के आध्यात्मिक जीवन (आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता) नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।

Friday, 11 January 2019

भगवान भाव के भूखे हैं धन के नही


वैदिक काल की बात है। कान्तिपुर में चोल नामक चक्रवर्ती नरेश राज्य करते थे। उनके राज्य में कोई रोगी और दुःखी नहीं था। राजा निरन्तर दान-पुण्य तथा यज्ञ किया करते थे। सर्वगुण होते हुए भी उनके मन अभिमान आ गया। वे समझने लगे कि मैं दान-पूजन करके भगवान को जितना प्रसन्न कर सकता हूँ, उतना दूसरा कोई नहीं कर सकता। वे इस गर्वानुभूति में भूल गये कि भगवान धन के नहीं भाव के भूखे होते हैं।
उनके नगर में विष्णुदास नामक एक गरीब ब्राह्मण का भी निवास था। उनका विश्वास था कि श्रद्वा-भक्ति से समर्पित फूल-पत्ते आदि को भी भगवान बड़े चाव से ग्रहण करते हैं।
समुद्र तट पर एक मन्दिर था जिसमें राजा चोल और ब्राह्मण विष्णुदास प्रतिदिन पूजा करने जाया करते थे। एक दिन राजा चोल भगवान की पूजा कर मन्दिर में बैठे थे। उसी समय भक्त विष्णुदास जल का लौटा तथा तुलसी पुष्पों से भरी छोटी-सी डलिया लिए वहां पहुंचे। विष्णुदास भक्तिभाव में थे और सीधे भगवान के पास जाकर पूर्जा अर्चना करने लगे। उन्होंने भगवान को भक्तिपूर्वक स्नान कराया। स्नान के जल से राजा के द्वारा चढ़ाये हुए सारे बहुमूल्य वस्त्राभूषण भीग गये। वह सब देखकर राजा को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने अपना आपा खोते हुए बोला-‘ कंगले ब्राह्मण! तुझमें तो तनिक भी बुद्धि नहीं है। मैंने भगवान की कितना सुन्दर श्रृंगार किया था। तुमने सब बिगाड दिया? फूल-पत्तों से भी कोई पूजा-भक्ति होती है। भगवान को इस तरह प्रसन्न नहीं किया जाता।’
ब्राह्मण ने विनय पूर्वक कहा-‘राजन्! मेरी नज़र आपकी पूजा-सामग्री पर गयी ही नहीं। मेरी समझ में भगवान की पूजा स्वर्ण-पुष्प और आभूषणों से ही होती हो, ऐसी बात नहीं हैं। भगवान को प्रसन्न करने के लिए भाव की आवश्यता होती है, न कि धन-दौलत की। भगवान यदि धन से ही प्रसन्न होते तो हम गरीब लोग कैसे पूजा कर सकते। अतः आप धन का गर्व छोड़ दें। दूसरे लोग अपनी स्थिति के अनुसार पूजा करे, इसमें आपको भी प्रसन्न होना चाहिए।
राजा ने ब्राह्मण का पुनः तिरस्कार करते हुए कहा-‘तेरे फूल-पत्तों से भगवान प्रसन्न होते हैं या मेरी धन-सम्पत्ति के अर्पण से? अब देखूंगा कि हम दोनों में किस को पहले भगवान के दर्शन होते हैं। मैं भी भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करता हूँ, तू भी कर।’ ब्राह्मण ने राजा की बात मान ली।
राजा ने महल मे जाकर मुद्गल मुनि को बुलाया और उनके आचार्यत्व में एक बहुत बड़े विष्णुयज्ञ का आरम्भ कर दिया।
गरीब ब्राह्मण ने भी नियमों का पालन करते हुए भक्तिपूर्वक भगवान का पूजन करना आरम्भ कर दिया। इसी के साथ उन्होंने खाते-पीते, सोते-जागते प्रेमपूर्वक स्मरण करते हुए भगवान के दर्शन का अभ्यास किया। इसी तरह भक्ति भाव में काफी समय बीत गया।
विष्णुदास प्रातःकाल एक रोटी बनाकर रख देते और दिन में एक बार खा लेते। वे दिन-रात साधना में लगे रहते। रोज की भांति एक दिन रोटी बना कर रखी, जब खाने का समय हुआ तो पाया कि यह रोटी वहाँ थी ही नहीं। बेचारे ब्राह्मण भूखे तो थे, पर दुबारा रोटी बनाने में साधना का समय व्यय करना अनुचित समझ कर वे भूखे रह गये। दूसरे दिन रोटी बनाकर रखी और जब पूजा-अर्चना के बाद वापिस आये तो देखा कि रोटी नहीं है। इस प्रकार रोटियों के चोरी होते सात दिन बीत गये। ब्राह्मण का भूख से बुरा हाल था। आठवें दिन मन में विचार आया कि देखते हैं कि रोटी कौन चुराता है। वे रोटी बनाकर एक तरफ छिपकर खड़े हो गये।
एक चण्डाल दबे पांव आता है जो भूख से व्याकुल लग रहा था। शरीर मात्र हड्डियों का ढांचा था। उसमें दीनता छायी हुई। सर्वरूप में भगवान को देखने वाले विष्णुदास के मन में दया उमड़ पड़ी।
उन्होंने चण्डाल को आवाज लगायी। ‘ठहरो-ठहरो, रूखा अन्न कैसे खाओगे? मैं घी देता हूँ, इसके साथ रोटी लगाकर खाओ।’
चण्डाल आकस्मक ब्राह्मण को देखकर डर गया। वह रोटी लेकर वहां से भागा। विष्णुदास घी का पात्र लिए उसके पीछ-पीछे दौड़े। कुछ दूर जाने पर अत्यन्त कमजोर चण्डाल मूर्छित हो कर गिर पड़ा। ब्राह्मण विष्णुदास निकट आये और उस पर कपड़े से हवा करने लगे।
वह चण्डाल कोई नहीं स्वंय साक्षात भगवान विष्णु थे, वे साक्षात् प्रकट हो गये। विष्णुदास आनन्द में बेसुध होकर उस मनोहर छवि को एकटक होकर देखते रहे। भगवान विष्णु ने भक्त को प्रेम में आलिंगन कर अपने साथ विमान में बैठाया।
विमान आकाशपथ से चोल राजा के यज्ञस्थल के ऊपर से  निकला। चोलराजा ने देखा कि दरिद्र ब्राह्मण केवल भावपूर्ण भक्ति के प्रताप से उनके यज्ञ की पूर्णाहुति के पहले ही भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन करके उनके साथ वैकुण्ठ जा रहा है। चोलराजा का धन-दान का सारा अभिमान चूर-चूर हो गया।

Wednesday, 9 January 2019

मन कभी खाली नही बैठ सकता

      मन कभी भी ख़ाली नहीं बैठ सकता, कुछ ना कुछ करना इसका स्वभाव है, इसे काम चाहिए। अच्छा काम करने को ना मिला तो ये बुरे की तरफ भागेगा। मन खाली हुआ, बस उपद्रव प्रारम्भ कर देगा। लड़ाई -झगड़ा, निंदा-आलोचना, विषय- विलास ऐसी कई गलत जगह पर यह आपको ले जायेगा जहाँ पतन निश्चित है।
     
        पतन एक जन्म का हो तो भी कोई बात नहीं, ऐसे कई अपराध और गलत कर्म करा देता है जिसके प्रारब्ध फल को भुगतने के लिए कई कई जन्म कम पड़ जाते हैं।

       मन को सृजनात्मक और रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखिये। इससे आपका आत्मिक, साथ में भौतिक विकास भी होगा। मन सही दिशा में लग गया तो जीवन मस्त (आनंदमय) हो जायेगा। नहीं तो अस्त-व्यस्त और अपसेट होने में भी देर ना लगेगी।