Tuesday, 16 April 2019

आत्मीय एहसास

रामायण कथा का एक अंश

जिससे हमे सीख मिलती है "एहसास" की...

    


*श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया* चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे,

राह बहुत *पथरीली और कंटीली* थी !

की यकायक *श्री राम* के चरणों मे *कांटा* चुभ गया !


श्रीराम *रूष्ट या क्रोधित* नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से *अनुरोध* करने लगे !

बोले- "माँ, मेरी एक *विनम्र प्रार्थना* है आपसे, क्या आप *स्वीकार* करेंगी ?"


*धरती* बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !"


प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप *नरम* हो जाना !

कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना !

मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे *आघात* मत करना"


श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई !

पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ?

जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें ?

फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी *व्याकुलता* क्यों ?"


*श्री राम* बोले- "नही...नही माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसके *हृदय* को विदीर्ण कर देगा !"


*"हृदय विदीर्ण* !! ऐसा क्यों प्रभु ?",

*धरती माँ* जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं !


"अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि...इसी *कंटीली राह* से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये *शूल* उनके पगों मे भी चुभे होंगे !

मैया, मेरा भरत कल्पना मे भी मेरी *पीड़ा* सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप *कमल पंखुड़ियों सी कोमल* बन जाना..!!"


अर्थात 

*रिश्ते* अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं ।

जहाँ *गहरी आत्मीयता* नही, वो रिश्ता शायद नही परंतु *दिखावा* हो सकता है ।


इसीलिए कहा गया है कि...

*रिश्ते*खून से नहीं, *परिवार* से नही,

*मित्रता* से नही, *व्यवहार* से नही,

बल्कि...

सिर्फ और सिर्फ आत्मीय एहसास से ही बनते और निर्वहन किए जाते हैं।

जहाँ एहसास ही नहीं, 

आत्मीयता ही नहीं ..

वहाँ अपनापन कहाँ से आएगा l

          

हम सबके लिए प्रेरणास्पद लघुकथा

No comments:

Post a Comment