Saturday, 30 June 2018

राज योग/ RAJYOG

राजयोग
         राजयोग सभी योगों का राजा कहलाता है राजयोग महर्षि पतंजलि द्वारा रचित अष्टांग योग में राजयोग का 
वर्णन आता है। राजयोग का विषय चित्तवृत्तियों का निरोध करना है। महर्षि पतंजलि ने समाहित चित्त वालों के 
लिए अभ्यास और वैराग्य तथा विक्षिप्त चित्त वालों के लिए क्रियायोग का सहारा लेकर आगे बढ़ने का रास्ता 
सुझाया है। इन साधनों का उपयोग करके साधक के क्लेषों का नाश होता है

         प्रत्येक व्यक्ति में अनन्त ज्ञान और शक्ति का आवास है। राजयोग उन्हें जाग्रत करने का मार्ग प्रदर्शित करता है 
मनुष्य के मन को एकाग्र कर उसे समाधि नाम वाली पूर्ण एकाग्रता की अवस्था में पंहुचा देना। स्वभाव से ही मानव 
मन चंचल है। वह एक क्षण भी किसी वास्तु पर ठहर नहीं सकता। इस मन चंचलता को नष्ट कर उसे किसी प्रकार 
अपने काबू में लाना,किस प्रकार उसकी बिखरी हुई शक्तियो को समेटकर सर्वोच्च ध्येय में एकाग्र कर देना 
यही राजयोग का विषय है। जो साधक प्राण का संयम कर,प्रत्याहार,धारणा द्वारा इस समाधि अवस्था की प्राप्ति 
करना चाहते हे। उनके लिए राजयोग बहुत उपयोगी ग्रन्थ है।

              जब तक मनुष्य के चित्त में विकार भरा रहता है और उसकी बुद्धि दूषित रहती है, तब तक तत्त्वज्ञान 
नहीं हो सकता। राजयोग के अन्तर्गत महिर्ष पतंजलि ने अष्टांग को इस प्रकार बताया है-
१- यम 
२- नियम 
३- आसन 
४- प्राणायाम 
५- प्रत्याहार 
६- धारणा 
७- ध्यान
८- समाधि
            यह परमात्मा से संयोग प्राप्त करने का मनोवैज्ञानिक मार्ग है जिसमें मन की सभी शक्तियों को एकाग्र 
कर एक केन्द्र या ध्येय वस्तु की ओर लाया जाता है।

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