हमारी भावनाऐं और हमारा विकाश.
एक गरीब आदमी राह पर चलते भिखारियों को देखकर हमेंशा दु:खी होता और भगवान से प्रार्थना करता कि:- “हे भगवान! मुझे इस लायक तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को कम से कम 1 रूपया दे सकता।
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“भगवान ने उसकी सुन ली और उसे एक अच्छी कम्पनी में काम मिल गया।
अब उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह उन्हें 1 रूपया अवश्य देता, लेकिन वह 1 रूपया देकर सन्तुष्ट नहीं था।
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इसलिए वह जब भी भिखारियोंको 1 रूपए का दान देता, ईश्वर से प्रार्थना करता कि:- “हे भगवान! 1 रूपए में इन बेचारों का क्या होगा?
कम से कम मुझे ऐसा तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को 10 रूपया दे सकता। एक रूपए में आखिर होता भी क्या है"
संयोग से कुछ समय बाद उसी कम्पनी में उसकी तरक्की हो गई और वह उसी कम्पनी में मेनेजर बन गया, जिससे उसका स्तर ऊंचा हो गया। उसने अच्छी सी महंगी कार खरीद ली, बडा घर बनवा लिया।
फिर भी उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह अपनी अपनी कार रोककर उन्हें 100 रूपया दे देता, मगर फिर भी उसे खुशी नहीं थी।
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वह अब भी भगवान से प्रार्थना करता कि:“100 रूपए में इन बेचारों का क्या भला होता होगा?
काश मैं ऐसा बन पाता कि जो भी भिखारी मेरे सामने से गुजरता, वो भिखारी ही न रह जाता।“संयोग से नियति ने फिर उसका साथ दिया और वो कॉर्पोरेट जगत का चेयरमैन चुन लिया गया।
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अब उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी। मंहगी कार, बंगला, प्रथम श्रेणी का रेल टिकट आदि उसके लिए अब पुरानी बातें हो चुकी थीं। अब वह हमेंशा अपने स्वयं के हवाई जहाज में ही सफर करता था और एक शहर से दूसरे शहर नहीं बल्कि एक देश से दूसरे देश में घूमता था।
लेकिन गरीब, निर्धनों के प्रति उसकी प्रार्थनाऐं अभी भी वैसी ही थीें, जैसी तब थीं, जब वह एक गरीब व्यक्ति था।
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इस लघु कथा का सार यह है कि आपकी नियति या आपका भाग्य अापकी भावनाओं पर ही निर्भर करता है।
आप जैसी भावनाऐं रखते हैं, वैसे ही बनते जाते हैं। इसलिए आप जैसा बनना चाहते हैं, वैसी ही भावनाऐं रखिये।
एक गरीब आदमी राह पर चलते भिखारियों को देखकर हमेंशा दु:खी होता और भगवान से प्रार्थना करता कि:- “हे भगवान! मुझे इस लायक तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को कम से कम 1 रूपया दे सकता।
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“भगवान ने उसकी सुन ली और उसे एक अच्छी कम्पनी में काम मिल गया।
अब उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह उन्हें 1 रूपया अवश्य देता, लेकिन वह 1 रूपया देकर सन्तुष्ट नहीं था।
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इसलिए वह जब भी भिखारियोंको 1 रूपए का दान देता, ईश्वर से प्रार्थना करता कि:- “हे भगवान! 1 रूपए में इन बेचारों का क्या होगा?
कम से कम मुझे ऐसा तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को 10 रूपया दे सकता। एक रूपए में आखिर होता भी क्या है"
संयोग से कुछ समय बाद उसी कम्पनी में उसकी तरक्की हो गई और वह उसी कम्पनी में मेनेजर बन गया, जिससे उसका स्तर ऊंचा हो गया। उसने अच्छी सी महंगी कार खरीद ली, बडा घर बनवा लिया।
फिर भी उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह अपनी अपनी कार रोककर उन्हें 100 रूपया दे देता, मगर फिर भी उसे खुशी नहीं थी।
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वह अब भी भगवान से प्रार्थना करता कि:“100 रूपए में इन बेचारों का क्या भला होता होगा?
काश मैं ऐसा बन पाता कि जो भी भिखारी मेरे सामने से गुजरता, वो भिखारी ही न रह जाता।“संयोग से नियति ने फिर उसका साथ दिया और वो कॉर्पोरेट जगत का चेयरमैन चुन लिया गया।
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अब उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी। मंहगी कार, बंगला, प्रथम श्रेणी का रेल टिकट आदि उसके लिए अब पुरानी बातें हो चुकी थीं। अब वह हमेंशा अपने स्वयं के हवाई जहाज में ही सफर करता था और एक शहर से दूसरे शहर नहीं बल्कि एक देश से दूसरे देश में घूमता था।
लेकिन गरीब, निर्धनों के प्रति उसकी प्रार्थनाऐं अभी भी वैसी ही थीें, जैसी तब थीं, जब वह एक गरीब व्यक्ति था।
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इस लघु कथा का सार यह है कि आपकी नियति या आपका भाग्य अापकी भावनाओं पर ही निर्भर करता है।
आप जैसी भावनाऐं रखते हैं, वैसे ही बनते जाते हैं। इसलिए आप जैसा बनना चाहते हैं, वैसी ही भावनाऐं रखिये।
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