Wednesday, 4 January 2023

परहित सरिस धरम नहिं भाई

 परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर   पीड़ा  सम नहिं अधमाई


सुख परहित के साधने से ही मिलता है और परहित ही धर्म होता है अतःधर्म से ही सुख संभव है ,कोई किसी को परेशान करके संपन्न हो सकता है किन्तु सुखी तभी होगा जब दूसरे की परेशानी में काम आएगा। सुख व्यक्ति की अनिवार्य आवश्यकता है संसार के भोग्य पदार्थ हमें सुखी जीवन देते है ऐसा हमें लगता है। लेकिन इन सुख, बस्तु बिषयों से मिलने वाले सुख के साथ दुख भी जुड़ा होता है, जैसे आज के परिवेश में, हम रोजी रोटी के चक्कर में इतना व्यस्त थे कि हर बार यही मुख से निकलता कि मरने की फुर्सत नहीं है कमाऊगा नहीं तो परिवार एवं बाल बच्चों को कैसे पालूंगा,

        लेकिन अभी कुछ दिन पहले कोरोना काल में हम दो महीने घर क्या बैठे, अपने दुख का दुखडा रोना शुरू किए, लेकिन देखा जाय तो प्रकृति ने परिवार के साथ वक्त गुजारने का समय दिया, अब आप के उपर है आप उसे लेते कैसे है


एहि बिधि सकल जीव जग रोगी, सोक हरष   भय प्रीति बियोगी॥

मानस     रोग कछुक  मैं गाए,  हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए॥

        मानस कहता हैं कि हर्ष भी एक रोग है हर्ष के साथ शोक भी जुड़ा है, मिठाई देखने और खाने में दोनों अच्छी लगती है लेकिन खाने के बाद शरीर को कितना नुकसान पहुचाता है यह समय बताता है,

मानस में देखा जाय तो सुख आयोध्या एवं लंका दोनों में समान है,, रावण का सुख स्वार्थ का अर्थात व्यक्ति गत हैं, जैसे गोस्वामी जी कहते है लंका में

सुख संपति     सुत  सेन सहाई। जय प्रताप.    बल  बुद्धि बडाई।

नित नूतन      सब  बाढत जाई।जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई।


सुख धन संपत्ति संतान सेना मददगार विजय प्रताप बुद्धि शक्ति और प्रशंसा जैसे जैसे नित्य बढते हैं-वैसे वैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढता हैै। बाल बच्चों की कमी नहीं है क्योंकि सभी भोगी एवं बिलासी हैं ओर आयोध्या की तरफ नजर उठाओ राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ जब जनकपुर पहुचते हैं, धनुष भंग होता है राम जी जनकनन्दिनी कि शादी का कार्ड आयोध्या आता है, तो दशरथ जी के खुशी का ठिकाना नहीं जो दशरथ जी राम को विश्वामित्र के साथ भेजने को तैयार नहीं थे, आज वही फूले नहीं समा रहे हैं 


जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि   ताहि    कामना नाहीं॥

तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ, धरमसील     पहिं जाहिं सुभाएँ


जैसे नदियाँ समुद्र में जाती हैं, यद्यपि समुद्र को नदी की कामना नहीं होती ।वैसे ही सुख और सम्पत्ति बिना ही बुलाए स्वाभाविक ही धर्मात्मा पुरुष के पास जाती है। वहीं हाल दशरथ का हैं बिना मागे ही सब मिल रहा है इस प्रकार जगत् में समस्त जीव रोगी हैं, जो शोक, हर्ष, भय, प्रीति और वियोग के दुःख से और भी दुःखी हो रहे हैं। मैंने ये थो़ड़े से मानस रोग कहे हैं। ये हैं तो सबको, परंतु इन्हें जान पाए हैं कोई विरले ही।

 अब हम रावण पर ध्यान दे उनके जीवन में अभाव बना ही हैं

देव यक्ष गंधर्ब नर किन्नर नाग कुमारि। जीति बरी निज बाहुबल बहु सुंदर बर नारि।।

देवता, यक्ष, गन्धर्व, मनुष्य किन्नर और नागों की कन्याओं तथा बहुत_सी अन्य सुन्दरी और उत्तम स्त्रियों को उसने अपनी भुजाओं के बल से जीतकर ब्याह लिया। लेकिन सूफनखा के कहने पर पर स्त्री का मोह नहीं गया, इतनी सुंदरियां होने के बाद भी नकली साधू का बेश बनाकर सीता जी को हरने के लिए चला गया यही रावण की मनोवृत्ति हैं।

 अब कबीर दास जी के शव्दों मे

झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद, खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद

 कबीर कहते हैं कि अरे जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।अब देखा जाय तो माता शतरूपा भगवान से  राम रुपी पुत्रसुख की मांग की थी ओर भगवान ने दिया। लेकिन महाभारत काल में माता कुंती के बारे मे एक भ्रम है कि उन्होंने भगवान से दुख मांगा था

विपदः सन्तु नः शश्वत तत्र तत्र जगतगुरो। भवतो दर्शनं यत्स्याद्पुनभवदर्शनम्॥

लेकिन हमारा मत है, और  भगवान ने माता कुंती को दुख दिया क्या? नहीं, माता कुंती ने कहा था कि हे प्रभु आपकी बिस्मृति न होने पाये, स्मृति बनी रहे, क्योंकि बिस्मृति से बढकर कोइ कष्ट नहीं हो सकता, और भगवान ने वही दिया। कई बार हम तरह तरह के अपने हिसाब से अर्थ लगा लेते हैं,क्योंकि जब बिपदा आती हैं तो हम बिस्मृति हो जाते है,!

ईश्वर आप सभी को सुखी रखें और आपकी स्मृतियाँ ईश्वर की प्रति बनी रहे

   प्रभु   सबका  कल्याण  करें

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Saturday, 5 March 2022

योग में सीमा और सावधानियां

 योग हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक जीवन का विकास करता है, 

योग का अर्थ जुड़ना होता। योग - आसन, प्राणायाम, मुद्रा और ध्यान के माध्यम से प्राप्त होती है। 
योग किसी भी बीमारी में इलाज का एक सफल विकल्प भी है।

योग में सीमा और सावधानियां - 
योग करने की कोई सीमा नहीं है, बशर्ते किसी योग गुरु के निगरानी में किया जाए।

योग मुख्यतः चार प्रकार हैं।
1) राजयोग - इस योग का सबसे महत्वपूर्ण अंग है ध्यान। योगसूत्र में पतंजलि ने इसके आठ अंग बताएं हैं - 
 यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि

2) कर्मयोग - दैनिक जीवन में किया गया कोई भी कार्य कर्मयोग की श्रेणी में आता है, हम वर्तमान में अच्छा कर्म करके भविष्य को अच्छा बना सकते है। अपने द्वारा निःस्वार्थ भाव से किया गया कोई भी काम कर्मयोग के अंतर्गत आता है। 

3) भक्तियोग - सभी में और हर काम में ईश्वर की प्रेरणा मानना ही भक्ति योग है।

4) ज्ञानयोग - ज्ञानयोग बुद्धि का योग है, ज्ञान योग सबसे कठिन माना जाता है, इसमे बहुत अध्ययन करना होता है।

योग में सीमा और सावधानियों में क्या अंतर है?

योग हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक जीवन का विकास करता है, 
योग का अर्थ जुड़ना होता। योग - आसन, प्राणायाम, मुद्रा और ध्यान के माध्यम से प्राप्त होती है। 
योग किसी भी बीमारी में इलाज का एक सफल विकल्प भी है।

योग में सीमा और सावधानियां - 
योग करने की कोई सीमा नहीं है, बशर्ते किसी योग गुरु के निगरानी में किया जाए।

योग मुख्यतः चार प्रकार हैं।
1) राजयोग - इस योग का सबसे महत्वपूर्ण अंग है ध्यान। योगसूत्र में पतंजलि ने इसके आठ अंग बताएं हैं - 
 यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि

2) कर्मयोग - दैनिक जीवन में किया गया कोई भी कार्य कर्मयोग की श्रेणी में आता है, हम वर्तमान में अच्छा कर्म करके भविष्य को अच्छा बना सकते है। अपने द्वारा निःस्वार्थ भाव से किया गया कोई भी काम कर्मयोग के अंतर्गत आता है। 

3) भक्तियोग - सभी में और हर काम में ईश्वर की प्रेरणा मानना ही भक्ति योग है।

4) ज्ञानयोग - ज्ञानयोग बुद्धि का योग है, ज्ञान योग सबसे कठिन माना जाता है, इसमे बहुत अध्ययन करना होता है।

आध्यात्मिक जानकारी जैसे - आरती, चालीसा

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Wednesday, 19 January 2022

तुम्हे जब देखता हूँ मैं

तुम्हे जब देखता हूँ मैं 
तो सब कुछ भूल जाता हूँ 
कहाँ हूँ क्यों खड़ा हूँ मैं 
ये सब भी भूल जाता हूँ 
तुम्हारी आँखों का काजल 
गजल मेरी बनाता है 
तुम्हारी साँस की खुशबू 
मेरा तन - मन महकाता है 
तुम्हे पाकर पास अपने 
मैं दुनिया को भूल जाता हूँ 
तुम्हारा मुस्कुराना भी 
खिलते फूलो सा लगता है 
तुम्हारा यूँ शरमाना विक्रान्त 
के दिल को चुराता है 
तुम्हे जब देखता हूँ मैं 
तो सब कुछ भूल जाता हूँ 
कहाँ हूँ क्यों खड़ा हूँ मैं 
ये सब भी भूल जाता हूँ

खोया - खोया रहता हूँ

जब से मिला हूँ तुमसे मैं, 
बस खोया - खोया रहता हूँ, 
मिल जाऊँ तुमसे जल्दी मैं, 
यही ख्वाब संजोया रहता हूँ, 
जल्दी से तुमको पा जाऊँ, 
मैं और तुम से हम हो जाऊँ, 
इस सपने में रंग भरने को, 
मैं सोया - सोया रहता हूँ, 
होगी वो कहाँ, कैसे होगी, 
ये बात सताती है विक्रान्त को हरपल, 
रहेगी इक दिन साथ मेरे, 
ये उम्मीद जगाये रहता हूँ
जब से मिला हूँ तुमसे, 
बस खोया - खोया रहता हूँ।

प्यार का इजहार

मैं होंठो से कुछ कह पाया नहीं, 
पर निगाहो ने मेरी कुछ छुपाया नहीं, 
वो जान सब कुछ गए, पर कुछ बोले नहीं, 
वो चले यूँ गये, मुड़कर देखे नहीं, 
बहुत समय तक मैं यूँ ही राह तकता रहा, 
और जमाना मुझपे ही हँसता रहा, 
मुद्दतें हो गई आज आये हैं वो, 
मुझे ही भला बुरा सुनाये हैं वो, 
कहते हैं कि क्यूँ मुँह से बोला नहीं, 
जुबां से क्यूँ कुछ भी बोला नहीं, 
प्यार को यूँ छुपाना नहीं चाहिए, 
दिल भी किसी का दुखाना नहीं चाहिए, 
दिल उनका न दुखे ये सोचकर चुप रहा, 
हो गयी वो किसी की न विक्रान्त की हुई, 
उनकी बात सुनकर बहुत पछतावा हुआ, 
उनकी जुदाई का गम अब जीवन भर का हुआ, 
इसलिए भाई सुन लो जरा ध्यान से, 
प्यार का इजहार कर दो समय जान के।