गया में पिंडदान
बिहार की राजधानी पटना से करीब 104 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गया । धार्मिक दृष्टि से गया , हिन्दूओं के लिए आदरणीय है। हिन्दू , गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं।इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध , तर्पण और पिण्डदान करते दिख जाते हैं।
गया में हर व्यक्ति क्यों चाहता है पिंडदान करना ? गया तीर्थ के बारे में गरूड़ पुराण में कहा गया है कि गया श्राद्ध करने मात्र से पितर यानी परिवार में जिनकी मृत्यु हो चुकी है वह संसार सागर से मुक्त होकर भगवान विष्णु की कृपा से उत्तम लोक में
जाते हैं। वायु पुराण में बताया गया है कि मीन , मेष , कन्या एवं कुंभ राशि में जब सूर्य होता है उस समय गया में पिण्ड दान करना बहुत ही उत्तम फलदायी होता है। इसी तरह मकर संक्रांति और ग्रहण के समय जो श्राद्ध और पिण्डदान किया जाता है वह श्राद्ध करने वाले और मृत व्यक्ति दोनों के लिए ही कल्याणी और उत्तम लोकों में स्थान दिलाने वाला होता है।गया तीर्थ के बारे में गरूड़ पुराण यह भी कहता है कि यहाँ पिण्डदान करने मात्र से व्यक्ति की सात पीढ़ी और एक सौ कुल का उद्धार हो जाता है। *गया तीर्थ के महत्व को भगवान राम ने भी स्वीकार किया है।**गया , में देवी सीता का शाप है ( जब सीता ने किया पिण्डदान )*वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देकर दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। वनवास के दौरान भगवान राम लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुँचे। वहाँ श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। उधर दोपहर हो गई थी। पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढती जा रही थी। अपराह्न में तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी। गया जी के आगे फल्गू नदी पर अकेली सीताजी असमंजस में पड गई। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष , केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे
दिया।थोडी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है , इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा । तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत , केतकी के फूल , गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं । इतने में फल्गू नदी , गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।दशरथ जी ने सीताजी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गू नदी - जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी , तुझमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है। गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी। और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा। वटवृक्ष को सीता जी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी। यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पडता है , केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है.
बिहार की राजधानी पटना से करीब 104 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गया । धार्मिक दृष्टि से गया , हिन्दूओं के लिए आदरणीय है। हिन्दू , गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं।इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध , तर्पण और पिण्डदान करते दिख जाते हैं।
गया में हर व्यक्ति क्यों चाहता है पिंडदान करना ? गया तीर्थ के बारे में गरूड़ पुराण में कहा गया है कि गया श्राद्ध करने मात्र से पितर यानी परिवार में जिनकी मृत्यु हो चुकी है वह संसार सागर से मुक्त होकर भगवान विष्णु की कृपा से उत्तम लोक में
जाते हैं। वायु पुराण में बताया गया है कि मीन , मेष , कन्या एवं कुंभ राशि में जब सूर्य होता है उस समय गया में पिण्ड दान करना बहुत ही उत्तम फलदायी होता है। इसी तरह मकर संक्रांति और ग्रहण के समय जो श्राद्ध और पिण्डदान किया जाता है वह श्राद्ध करने वाले और मृत व्यक्ति दोनों के लिए ही कल्याणी और उत्तम लोकों में स्थान दिलाने वाला होता है।गया तीर्थ के बारे में गरूड़ पुराण यह भी कहता है कि यहाँ पिण्डदान करने मात्र से व्यक्ति की सात पीढ़ी और एक सौ कुल का उद्धार हो जाता है। *गया तीर्थ के महत्व को भगवान राम ने भी स्वीकार किया है।**गया , में देवी सीता का शाप है ( जब सीता ने किया पिण्डदान )*वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देकर दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है। वनवास के दौरान भगवान राम लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुँचे। वहाँ श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। उधर दोपहर हो गई थी। पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढती जा रही थी। अपराह्न में तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी। गया जी के आगे फल्गू नदी पर अकेली सीताजी असमंजस में पड गई। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष , केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे
दिया।थोडी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है , इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा । तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत , केतकी के फूल , गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं । इतने में फल्गू नदी , गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।दशरथ जी ने सीताजी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गू नदी - जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी , तुझमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है। गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी। और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा। वटवृक्ष को सीता जी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी। यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पडता है , केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है.
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