आज सुबह कुछ अलग रही
जैसे दादी मुझको थी जगा रही
उठकर देखा तो कोई नहीं
सिर्फ मेरी ही परछाई थी
उठते ही जो याद आया
वो मम्मी पापा की सूरत थी
घर से बाहर जब मैं निकला
तो सबकुछ मुझको नए लगे
जैसे सबकुछ मन ही मन में
मुझसे थे कुछ कह रहे
ये अदभुद बदलाव है क्यूँ
ये मुझे समझ में तब आया
जब मोबाइल पर अपनों का
जन्मदिन का संदेशा पाया
अपनों से जो प्यार मिला
उससे आँखे भर आयीं है
अपनों से विक्रान्त दूर सही
पर उनकी हर पल याद आई है।
जैसे दादी मुझको थी जगा रही
उठकर देखा तो कोई नहीं
सिर्फ मेरी ही परछाई थी
उठते ही जो याद आया
वो मम्मी पापा की सूरत थी
घर से बाहर जब मैं निकला
तो सबकुछ मुझको नए लगे
जैसे सबकुछ मन ही मन में
मुझसे थे कुछ कह रहे
ये अदभुद बदलाव है क्यूँ
ये मुझे समझ में तब आया
जब मोबाइल पर अपनों का
जन्मदिन का संदेशा पाया
अपनों से जो प्यार मिला
उससे आँखे भर आयीं है
अपनों से विक्रान्त दूर सही
पर उनकी हर पल याद आई है।
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