एक क्षण भी कुसंग न करें
अच्छे व्यक्तियों का संग करके मानव अनेक सद्गुणों से युक्त होता है, जबकि दुर्व्यसनी एवं दुष्टों का संग करके वह कुमार्गी बन जाता है।
सत्पुरुषों या संतों अथवा परमात्मा के संग को सत्संग कहते है। संत-महात्मा तथा विद्वान हमेशा लोक-परलोक का कल्याण करनेवाली बातें बताकर लोगों को संस्कारित करते हैं, जबकि व्यसनी अपने पास आनेवाले को अपनी तरह के व्यसन में लगाकर उसका लोक-परलोक बिगाड़ देता है।
इसीलिए धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि भूलकर भी व्यसनी, निंदक, नास्तिक तथा कुमार्गी का एक क्षण का भी संग नहीं करना चाहिए।
अच्छे व्यक्तियों का संग करके मानव अनेक सद्गुणों से युक्त होता है, जबकि दुर्व्यसनी एवं दुष्टों का संग करके वह कुमार्गी बन जाता है।
सत्पुरुषों या संतों अथवा परमात्मा के संग को सत्संग कहते है। संत-महात्मा तथा विद्वान हमेशा लोक-परलोक का कल्याण करनेवाली बातें बताकर लोगों को संस्कारित करते हैं, जबकि व्यसनी अपने पास आनेवाले को अपनी तरह के व्यसन में लगाकर उसका लोक-परलोक बिगाड़ देता है।
इसीलिए धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि भूलकर भी व्यसनी, निंदक, नास्तिक तथा कुमार्गी का एक क्षण का भी संग नहीं करना चाहिए।
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