Monday, 18 August 2025

अजा (जया) एकादशी व्रत कथा

 अजा एकादशी का व्रत भाद्रपद (भादों) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इसे जया एकादशी भी कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन व्रत रखने से पिछले जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।






कथा


प्राचीन समय की बात है – अयोध्या नगरी में प्रतापी सम्राट हरिश्चंद्र राज्य करते थे। वे सत्यप्रिय, धर्मनिष्ठ और दानी राजा के रूप में प्रसिद्ध थे। लेकिन एक समय उन्हें कठोर परीक्षा का सामना करना पड़ा।


ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच विवाद के कारण राजा हरिश्चंद्र को अपना राज्य, धन और वैभव त्यागना पड़ा। उन्हें अपनी धर्मपत्नी शैव्या (तारा देवी) और पुत्र रोहिताश्व सहित दासत्व का जीवन जीना पड़ा।


राजा हरिश्चंद्र वाराणसी में एक चांडाल (श्मशान के रक्षक) के दास के रूप में रहने लगे और श्मशान में मृत व्यक्तियों का दाह संस्कार कराने का कार्य करने लगे।


समय बीता, राजा हरिश्चंद्र का जीवन दुख और कष्टों से भर गया। एक दिन महर्षि गौतम उनके पास आए और कहा –

“राजन! तुम्हारे पापों का नाश केवल भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का व्रत करने से होगा। यदि तुम श्रद्धा से यह व्रत करोगे तो तुम्हें सारे दुखों से मुक्ति मिल जाएगी।”


राजा हरिश्चंद्र ने पूरे नियम और श्रद्धा के साथ अजा एकादशी व्रत किया। इसके प्रभाव से उनके सभी पाप नष्ट हो गए। उसी समय देवताओं की वाणी गूंजी और राजा को पुनः राजपाट तथा सुख-समृद्धि प्राप्त हुई।



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महत्व


अजा एकादशी व्रत करने से अनजाने में हुए पाप भी नष्ट हो जाते हैं।


यह व्रत पापमोचक कहा गया है।


राजा हरिश्चंद्र की भाँति भक्तजन भी इस व्रत से जीवन के कष्टों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग प्राप्त करते हैं।




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👉 संक्षेप में – अजा (जया) एकादशी का व्रत करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं और भक्त को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।


Sunday, 13 April 2025

Om Jai Jagdish Hare Aarti | ॐ जय जगदीश हरे | आरती भगवान विष्णु की

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा। स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।
भगवान विष्णु की जय... माता लक्ष्मी की जय...
आरती करने के बाद दीपक को पूरे घर में दिखाएं...